पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७४ रसिकप्रिया यथा- चतुर-प्रवीण । चतुर = चार । जाति = प्रकार, भेद । अथ कैशिकी-लक्षण-(दोहा) (५०६) कहियै केसौदास जह, करुन हास सिंगार। सरल बरन सुभ भाव जहँ, सो कैसिकी बिचार ।२। -( कबित्त) (५०७) मिलिबे कौं एक मिली-मिलो फिरें दूतिकानि मिलि मन ही मन बिलास बिलसति हैं। बोलिबे कौं एक बाल बोल सुनिबे कौं एक, बोलि बोलि तीरथनि बर्तान वसति हैं । देखिबे कौं एकै फिरै देवता सी दौरि दौरि, देवता मनाइ दिन दान मनसति हैं। कीजै कहा करम को इहिं रूप मेरी माई, ये तो मेरे कान्हजू के नामहिं हँसति हैं ।३। शब्दार्थ-एक = कोई, कुछ । करम = भाग्य । बसति हैं = अर्थात् (व्रत में ) बसती हैं, करती हैं। मनसति हैं = संकल्प करती हैं। नाम-श्याम । भावार्थ-(धाय की उक्ति सखी से) मेरे कन्हैया से मिलने के लिए कुछ स्त्रियाँ तो दूतियों से मिलती फिरती हैं (उनसे मिला देने की प्रार्थना करती हैं)। कुछ उनसे मिलकर मन ही मन आनंदित होती हैं। कुछ तो उनसे बोलने के लिए चक्कर काटती रहती हैं और कुछ उनकी बातें सुनने के लिए । कुछ उनसे बातें कर करके तीर्थ और व्रतों के करने में लग जाती हैं ( कि मुझे श्रीकृष्ण प्रिय के रूप में मिलें )। उन्हें (श्रीकृष्ण को) देखने के लिए जो स्वयम् देवियों सी हैं, घूमती रहती हैं। वे उनका दर्शन करने के लिए देवताओं को मनाती हैं और प्रतिदिन दान का संकल्प करती रहती हैं। भाग्य की बात क्या कही जाय, इनके ऐसे रूपसौंदर्य के होते हुए भी, मैया री मैया, ये तो मेरे कन्हैया के नाम ( श्याम ) की हँसी उड़ा रही हैं सूचना-यहाँ 'कीजै कहा करम को' से करुण, 'ये तो मेरे कान्हत के नाहिं हँसति हैं' से हास्य तथा 'मिलबे कौं एक' आदि से शृंगार सूचित किया गया है। अक्षर सरल ( कोमल, मधुर ) हैं, भाव भी शुभ है अतः कैशिकी वृत्ति है। ३-मिलि-मिलि मिलि मही बिलास । मन ही.. 10-मन मन हो । बाल- फिरें । एक-ौर, अरु । मनसति में नसति । इहि-गुन । माई-भटू ।