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पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/८७

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रसिकप्रिया थल- सी जान पड़ने लगी। मेरे नेत्रकमलों ने बलपूर्वक बंद होते हुए (आज ) सचमुच इसे समझ लिया कि तू उनके सुख को जो कमल सा कहती थी वह बात नहीं है, वह तो चंद्रमा की भाँति दिखाई पड़ रहा था। सूचना-'कमल' कहने से सखी का तात्पर्य नायिका ने उसे दोषरहित, स्वस्थानसेवी और समशीलप्रदर्शक मान रखा था, पर आज उसने उसे 'चंद्रवत्' कहकर कलंकी, भ्रमणशील, न्यूनाधिक्य को प्राप्त होनेवाला बतलाया। अथ मध्या अधीरा यथा,—(कबित्त ) (६४) तात को सो गात सब बल बल बीर को सो, मात को सो मुख महामोह मन भायो है। थल सो अचल सील, अनिल सो चलचित्त, जल सो अमल, तेज तेज को सो गायो है। केसौदास बसत अकास. के 'प्रकास घोष, घटघट घरघर धैरु घनो छायो है। रति की सी रति, नाथ, रूप रतिनाथ को सो, कही केसौराइ झठ कौन यह पायो है ।४८ शब्दार्थ-तात = पिता (नंद ) । गात = शरीर, देह । बल बीर भाई 'बलदाऊजी । मात%3D यशोदा । मोहममता । ( स्थल ) पृथ्वी। अचल = अचंचल, क्षमाशील । अनिल = वायु । सील = गुण । निर्मल । तेज = प्राभा। तेज-अग्नि । प्रकास भांति, ढंग से । घोष-शब्द%3; गांव (ग्वालों का ) । घैरु = (१) घेर, विराव; (२) बदनामी । घनी = अत्यधिक । रति = कामदेव की स्त्री। रति-प्रीति । रतिनाथ = कामदेव । केसौराइ%श्रीकृष्ण । यह = इस कथन में । भावार्थ-(नायिका-वचन नायक से) पिता (नंद) जी की तरह आपका शरीर है (जैसे वे वृद्धावस्था के कारण कांपते हैं आप भी वैसे ही कांप रहे हैं), भाई बलदाऊजी का सा बल आपमें है ( वे मदिरा पीकर मतवाले होते हैं और भाप भी मतवाले हैं )। माता (यशोदा ) का सा आपका मुख है ( वे मस्तक पर टीका लगाती हैं आपके मस्तक पर भी टिकुली चिपकी है ) जैसा महामोह (ममत्व) उनमें है वैसा ही मोह (मूर्छा, जागरण के कारण झपकी लेना ) आपमें भी है, जो मन को रुचता है । ( पंच तत्त्वों के गुण भी आपमें मौजूद हैं)। पृथ्वी की भांति आप अचल गुण वाले हैं (पृथ्वी सर्वसहा है, पाप भी सब कुछ कही सुनी सह लेते हैं) । पवन की तरह आप चंचल हैं । जल की भांति आपका चित्त निर्मल है (जल नीचे की ओर जाता है, आप भी नीचे की ओर जा रहे हैं )। अग्नि की सी ही आपकी प्रभा ( मुंह की सुर्सी ) है । -को सो-कैसो । मुख-मुंह । मोह-मोहूँ । अनिल-अनल। अमल-