पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१८
रस-मीमांसा

________________

१६ इस-मीमांसा धूल झोंकते हुए अंधड़ के प्रचंड झोंकों में उग्रता और उच्छंखलता का ; बिजली की केंपानेवाली कड़क और ज्वालामुखी के ज्वलंत स्फोट में भीषणता का आभास मिलता हैं । ये सब विश्वरूपी महाकाव्य की भावनाएँ या कल्पनाएँ हैं। स्वार्थ-भूमि से परे पहुंचे हुए सच्चे अनुभूति-योगी या कवि इनके द्रष्टा मात्र होते हैं। जड़ जगत् के भीतर पाए जाने वाले रूप, व्यापार या परिस्थितियाँ अनेक मार्मिक तथ्यों की भी व्यंजना करती हैं। जीवन के तथ्यों के साथ उनके साम्य का बहुत अच्छा मार्मिक उद्घाटन कहीं कहीं हमारे यहाँ के अन्योक्तिकारों ने किया है । जैसे, इधर नरक्षेत्र के बीच देखते हैं तो सुख-समृद्धि और संपन्नता की दशा में दिन-रात घेरे रहनेवाले, स्तुति का खासा कोलाहल खड़ा करनेवाले, विपत्ति और दुर्दिन में पास नहीं फटकते ; उधर जड़ जगत् के भीतर देखते हैं तो भरे हुए सरोवर के किनारे जो पक्षी बराबर कलरव करते रहते हैं वे उसके सूखने पर अपना अपना रास्ता लेते हैं कोलाहल सुनि खगन के, सरवर ! जनि अनुरागि। ये सब स्वारथ के सखा, दुर्दिन दैहे त्यागि । दुर्दिन दैहैं त्यागि, तोय तेरो जब जैहै । दूरहि ते तजि अास, पास कोऊ नहिं ऐहै । ' इसी प्रकार सूक्ष्म और मार्मिक दृष्टिवालों को और गूढ़ व्यंजना भी मिल सकती है। अपने इधर उधर हरियाली और प्रफुल्लता का विधान करने के लिये यह आवश्यक है कि नदी कुछ काल तक एक बँधी हुई मर्यादा के भीतर बहती रहे। वर्षा १ [ अन्योक्ति-कल्पद्रुम, प्रथम शाखा, ४१।]