पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३१४

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प्रस्तुत रूप विधान कल्पित रूप-विधान दो प्रकार का होता है(१) प्रस्तुत रूप-विधान और (२) अप्रस्तुत रूप-विधान ।। यह प्रस्तुत रूप-विंधान इमारे पुराने आचार्यों का विभावपक्ष% है जिसके अंतर्गत आलंबन और उद्दीपन दोनों हैं।

  1. विभाव पक्ष के अंतर्गत वस्तुएँ दो रूपों में खाई जाती हैंवस्तु-रूप में और अलंकार-रूप में ; अर्थात् प्रस्तुत रूप में और अप्रस्तुत में। मान लीजिए कि कोई कवि कृष्ण का बन कर रहा है। पहले वह कृष्ण के श्याम या नील व शरीर को, उस पर पथे हुए पोतांबर को, त्रिभंगी मुद्रा को, स्मित आनम को, हाथ में ली हुई मुरली को, सिर के कुंचित केश और मोर-मुकुट आदि को सामने रखता है। यह विन्यास वस्तुरूप में हुआ । इसी प्रकार का विन्यास यमुना-तट, निकुञ्ज की बहराती जता, चंद्रिका, कोकिळ-कूजन आदि को दोग।। इनके साथ ही यदि कृष्ण के शोभा-वन में घन और दामिनी, सनाख कमळ आदि उपमान के रूप में वह बाता है तो यह विन्यास अलंकार-रूप मैं होगा।

-[ सूरदास, पृष्ठ १६१ ।]