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काव्य

सकते हैं। ये मूर्त विधान के प्रयोजन के नहीं होते। किसी ने कहा वहाँ बड़ा अत्याचार हो रहा है। इस अत्याचार शब्द के अंतर्गत मारना-पीना, डाटना-डपटना, लूटना-पाटना, इत्यादि बहुत से व्यापार हो सकते हैं, अतः ‘अत्याचार' शब्द के सुनने से इन सब व्यापारों की एक मिली-जुली अस्पष्ट भावना थोड़ी देर के लिये मन में आ जाती है; कुछ विशेष व्यापारों का स्पष्ट चित्र या मूर्त रूप नहीं खड़ा होता। इससे ऐसे शब्द कविता के उतने काम के नहीं। ये तत्त्व-निरूपण, शास्त्रीय विचार आदि में ही अधिक उपयोगी होते हैं । भिन्न भिन्न शास्त्रों में बहुत से शब्द तो विलक्षण ही अर्थ देते हैं और पारिभाषिक कहलाते हैं। शास्त्र-मीमांसक या तत्व-निरूपक को किसी सामान्य तथ्य या तत्त्व तक पहुँचने की जल्दी रहती है इससे वह किसी सामान्य धर्म के अंतर्गत आनेवाली बहुत सी बातों को एक मानकर अपना काम चलाता है, प्रत्येक का अलग अलग दृश्य देखने-दिखाने में नहीं उलझता ।

पर कविता कुछ वस्तुओं और व्यापारों को मन के भीतर मूर्त रूप में लाने और प्रभाव उत्पन्न करने के लिये कुछ देर रखना चाहती है। अतः उक्त प्रकार के व्यापक अर्थ-संकेतों से ही उसका काम नहीं चल सकता। इससे जहाँ उसे किसी स्थिति का वर्णन करना रहता है वहाँ वह उसके अंतर्गत सबसे अधिक मर्मस्पर्शिनी कुछ विशेष वस्तुओं या व्यापारों को लेकर उनका चित्र खड़ा करने का आयोजन करती है। यदि कहीं के घोर अत्याचार का वर्णन करना होगा तो वह कुछ निरपराध व्यक्तियों के वध, भीषण यंत्रणा, स्त्री-बच्चों पर निष्ठुर प्रहार आदि का क्षोभकारी दृश्य सामने रखेगी। वहाँ घोर अत्याचार हो रहा है' इस वाक्य द्वारा वह कोई प्रभाव नहीं उत्पन्न कर सकती।