पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१५०

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कबीर साहब.] १५१ [ 'हरिऔध' सुर नर मुनि जन औलिया, यह सब उरली तीर । . अलह राम की गम नहीं, तहँ घर किया कबीर। साखा संग्रह पृ० १२५. वे अपनी महत्ता बतला कर ही मौन नहीं हुए वरन् उन्होंने हिन्दुओं के समस्त धार्मिक ग्रन्थों और देवताओं की बहुत बड़ी कुत्सा भी की। इस प्रकार के उनके कुछ पद्य प्रमाण-स्वरूप नीचे लिखे जाते हैं- ... योग यज्ञ जप संयमा तीरथ व्रतदाना। नवधा वेद किताब है झूठे का बाना । कबीर बीजक पृ० ४११ चार वेद षट् शास्त्रऊ औ दश अष्ट पुरान । आसा दै जग बाँधिया तीनों लोक भुलान । र कबीर बीजक पृ० १४ औ भूले षट दर्शन भाई । पाखंड भेष रहा लपटाई। ताकर हाल होय अघकूचा । छ दर्शन में जौन बिगूचा । कवीर बीजक पृ० ६७ ब्रह्मा बिस्नु महेसर कहिये इन सिर लागी काई । इनहिं भरोसे मत कोइ रहियो इनहूँ मुक्ति न पाई। कबीर शब्दावली द्वितीय भाग पृ० १६ माया ते मन ऊपजै मन ते दश अवतार । ... ब्रह्म विस्नु धोखे गये भरम परा संसार । कबीर वीजक पृ० ६५० चार वेद ब्रह्मा निज ठाना । मुक्ति का मर्म उनहुँ नहिं जाना कबीर बीजक पृ० ६५०