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पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१९२

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गोस्वामी तुलसीदास ] १६३ [ 'हरिऔध' नाम रामचरितमानस है और जिसमें इन सब बातों की उच्च से उच्च शिक्षा विद्यमान है। उनकी वर्णन-शैली और शब्द-विन्यास इतना प्रबल है कि उनसे कोई हृदय प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। अपने महान् ग्रन्थ में उन्होंने जो आदर्श हिन्दू-समाज के सामने रखा है वह इतना पूर्ण, व्यापक और उच्च है जो मानव-समाज की समस्त श्राव- श्यकताओं और न्यूनताओं की पूर्ति करता है। भगवान् रामचन्द्र का नाम मर्यादा पुरुषोत्तम है। उनकी लीलाएँ आचार-व्यवहार और नीति भी मर्थ्यादित है। इसलिए रामचरितमानस भी मर्यादामय है। जिस समय साहित्य में मादा का उल्लंघन करना साधारण बात थी, उस समय गोस्वामीजी को ग्रन्थ भर में कहीं मर्य्यादा का उल्लंघन करते नहीं देखा जाता । कवि कर्म में जितने संयत वे देखे जाते हैं, हिन्दी- संसार में कोई कवि या महाकवि उतना संयत नहीं देखा जाता और यह उनके महान् सत्य और शुद्ध विचार तथा उस लगन का ही फल है जो उनको लोक-संग्रह की ओर खींच रहा था । - - गोस्वामीजी का प्रधान ग्रंथ रामायण है। उसमें धर्मनीति, समाज- नीति, राजनीति के सुन्दर से सुन्दर चित्रण हैं । गृहसेवियों से लेकर संसार-त्यागी सन्यासियों तक के लिए उसमें उच्च से उच्च शिक्षा मौजूद है। कर्तव्य-क्षेत्र में उतर कर मानव किस प्रकार उच्च जीवन व्यतीत कर सकता है, जिस प्रकार इस विषय में उसमें उत्तम से उत्तम शिक्षाएँ मौजूद हैं उसी प्रकार परलोक-पथ के पथिकों के लिए भी पुनीत ज्ञान-चर्चा और लोकोत्तर विचार विद्यमान है। हिन्द-धर्म के विविध मतों का समन्वय जैसा इस महान् ग्रन्थ में मिलता है वैसा किसी अन्य ग्रन्य में दृष्टिगत नहीं होता । शैवों और वैष्णवों का कलह सर्वविदित है । परन्तु गोस्वामीजी ने उसका जिस प्रकार निरा- करण किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। समस्त वेद, शास्त्र और पुराणों के उच्च से उच्च भावों का निरूपण इस ग्रन्थ में