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पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/२११

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कविवर केशवदास ] २१२ [ 'हरिऔध' है। नाम से ज्ञात होता है कि ये दोनों ग्रन्थ अलंकार के होंगे। किन्तु ये ग्रन्थ भी नहीं मिलते। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि ये ग्रन्थ कैसे थे, साधारण या विशद । मेरा विचार है कि वे साधारण अन्य ही थे। अन्यथा इतने शीघ्र लुप्त न हो जाते । मोहनलाल मिश्र ने 'शृङ्गार-सागर' नामक ग्रंथ की रचना की थीं। ग्रन्थ का नाम बतलाता है कि वह रस-सम्बन्धी ग्रन्थ होगा। इन लोगों के उपरान्त केशवदासजी ही कार्य-क्षेत्र में आते हैं। वे संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान् थे। वंश- परम्परा से उनके कुल में संस्कृत के उद्भट विद्वान् होते आते थे। उनके पितामह पंडित कृष्णदत्त मिश्र संस्कृत के प्रसिद्ध नाटक 'प्रबोध-चन्द्रोदय' के रचयिता थे। उनके पिता पंडित काशीनाथ भी संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध विद्वान थे। उनके बड़े भाई पंडित बलभद्र मिश्र संस्कृत के विद्वान् तो थे ही, हिन्दी भाषा पर भी बड़ा अधिकार रखते थे। इनका बनाया हुत्रा नखशिख-सम्बन्धी ग्रंथ अपने विषय का अद्वितीय ग्रन्थ है। ऐसे साहित्य-मान विद्वानों के वंश में जन्म ग्रहण करके केशवदासजी का हिन्दी भाषा के रीति-ग्रन्थों के निर्माण में विशेष सफलता लाम करना आश्चर्यजनक नहीं। वे संकोच के साथ हिन्दी-क्षेत्र में उतरे, जैसा निम्नलिखित दोहे से प्रकट होता है:- भाषा बोलि न जानहीं, जिनके कुल के दास । तिन भाषा कविता करी, जड़मति केशवदास । परन्तु जिस विषय को उन्होंने हाथ में लिया उसको पूर्णता प्रदान की। उनके बनाये हुए 'कविप्रिया' और 'रसिकप्रिया' नामक ग्रन्थ रीति- ग्रन्थों के सिरमौर हैं। पहले भी साहित्य विषय के कुछ ग्रन्थ बने थे और उनके उपरान्त भी अनेक रीतिग्रन्थ लिखे गये, परन्तु अबतक प्रधानता उन्हीं के ग्रन्थों को प्राप्त है। जब साहित्य-शिक्षा का कोई जिज्ञासु हिन्दी क्षेत्र में पदार्पण करता है, तब उसको 'रसिक-प्रिया' का