कविवर केशवदास ] २१६ [ 'हरिऔध' के अनेक अंश सुन्दर, सरस और हृदयग्राही भी हैं और उनमें प्रसाद गुण भी पाया जाता है । हाँ, यह अवश्य है कि वह गम्भीरता के लिए ही प्रसिद्ध है। मैं समझता हूँ कि हिन्दी-संसार में एक ऐसे ग्रंथ की भी श्रावश्यकता थी जिसकी पूर्ति करना केशवदासजी का ही काम था। अब केशवदासजी के कुछ पद्य मैं नीचे लिखता हूँ। इसके बाद भाषा और विशेषताओं के विषय में आप लोगों की दृष्टि उनकी ओर आकर्षित करूँगा- १- भूषण सकल घनसार हो के घनश्याम, कुसुम कलित केश रही छवि छाई सी। मोतिन की लरी सिरकंठ कंठमाल हार, और रूप ज्योति जात हेरत हेराई सी। चंदन चढ़ाये चार सुन्दर शरीर सब, नाम राखी जनु सुभ्र सोभा बसन बनाई सी। शारदा सी देखियत देखो जाइ केशोराइ, ठाढ़ी वह कुँवरि जुन्हाई मैं अन्हाई सी। २-मन ऐसो मन मृदु मृदुल मृणालिका के, सूत कैसो सुर ध्वनि मननि हरति है। दास्यो कैसो बीज दाँत पाँत से अरुण ओंठ, केशोदास देखि हग आनंद भरति है। एरी मेरी तेरी मोहिं भावत भलाई तातें, बूमत हौं वोहि और बूझति डरति है। माखन सी जीभ मुखकंज सी कोमलता में, काठ सी कठेठी बात कैसे निकरति है।
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