पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/२२८

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कविवर बिहारीलाल बिहारीलाल का ग्रंथ ब्रजभाषा साहित्य का एक अनूठा स्त्र है और इस बात का उदाहरण है कि घट में समुद्र कैसे भरा जाता है। गोस्वामी तुलसीदास की रामायण छोड़कर और किसी ग्रन्थ को इतनी सर्व-प्रियता नहीं प्राप्त हुई जितनी "बिहारी सतसई" को। रामचरित मानस के अतिरिक्त और कोई ग्रन्थ ऐसा नहीं है कि उसकी उतनी टीकाएँ बनी हों जितनी सतसई की अबतक बन चुकी हैं। बिहारीलाल के दोहों के दो चरण बड़े-बड़े कवियों के कवित्तों के चार चरणों और सहृदय कवियों के रचे हुए छप्पयों के छः चरणों से अधिकतर भाव-व्यंजना में समर्थ और प्रभाव-शालिता में दक्ष देखे जाते हैं। एक अंग्रेजी विद्वान् का यह कथन कि Brevity is the soul of wit and it is also the soul of art" ( संक्षिप्तता काव्य-चतुरी की आत्मा तो है ही, कला की भी आत्मा है) बिहारी की रचना पर अक्ष- रशः घटित होता है। बिहारी की रचनाओं की पंक्तियों को पढ़कर एक संस्कृत विद्वान् की इस मधुर उक्ति में संदेह नहीं रह जाता कि "अक्षराः कामधेनवः !" अक्षर कामधेनु हैं । वास्तव में बिहारी के दोहों के अक्षर कामधेनु हैं जो अनेक सूत्र से अभिमत फल प्रदान करते हैं।