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पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/२७

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हरिऔध की रस-साहित्य-समीक्षाएँ

हरिऔध जी हिन्दी जगत् में उस समय आये जब प्राचीन और नवीन युग में संधि हो रही थी। यद्यपि नवीन युग की नींव भारतेन्दु ने रख दी थी तो भी गद्य के क्षेत्र में खड़ी बोली की प्रतिष्ठा मात्र ही उनके समय में हो सकी। यद्यपि गद्य के क्षेत्र में खड़ी बोली में रचना-लेखन आरम्भ हो चुका था तो भी काव्य के लिए ब्रज भाषा की ही पूर्ण प्रतिष्ठा थी। खड़ी बोली के लिए केवल आन्दोलन मात्र चल रहा था। सर्वप्रथम हरिऔध जी ने अपना प्रयोगात्मक रूप साहित्य के सम्मुख उपस्थित किया। जिस समय हरिौध जी साहित्य रचना के क्षेत्र में आये उस समय अनेक जाने-माने साहित्यकार साहित्य के सभी क्षेत्रों में अपनी रचनाएँ उपस्थित कर रहे थे।

हरिऔध जी की रचनाओं को काल-क्रम की दृष्टि से दो अंशों में विभक्त कर देना अनुचित न होगा। बीसवीं शताब्दी के पूर्व उन्होंने तत्कालीन ढंग का कार्य साहित्य के क्षेत्र में किया।

उस समय हरिऔध जी ने रुक्मिणी परिणय, प्रद्युम्न विजय व्यायोग नामक नाटक लिखा, और भाषा की शक्ति प्रदर्शन के लिए