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पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/३२

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हरिऔध--]
[--रस-साहित्य-समीक्षायें
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नहीं, अपितु लोकनायक कृष्ण हैं। प्रिय प्रवास में कृष्ण के सम्बन्ध में घंटी अनेक घटनाओं का, जो लोक में प्रचलित हैं, उन्होंने वर्णन किया है। यह वर्णन भी स्मृति के द्वारा उनके विरहाकुल प्रेमियों द्वारा अभिव्यक्त हुआ है। पर सर्वत्र कवि ने समाज की वर्तमान परिस्थिति तथा जाग्रति का ध्यान रखा है। उनकी राधा भी लोक-सेविका राधा हैं, न कि रीतिकाल की कामुक कवियों की नायिका राधा। सामाजिक तत्वों का इतना बड़ा परिनिवेष्टन निश्चय ही प्रबन्ध के क्षेत्र में प्रिय प्रवास को भावना की दृष्टि से अत्यन्त उच्च स्तर पर रखता है। किन्तु इस सम्बन्ध में यह बात स्पष्ट है कि यह कृति सामाजिक चेतना जगाने की अपेक्षा साहित्यिक निर्माण की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह खड़ी बोली का प्रारम्भिक काव्य होते हुए भी ऊँचाई में समय से बहुत आगे था।

महाकाव्य के प्रायः सभी वर्णित लक्षणों का प्रयोग भी इसमें मिलता है। नायक से लेकर छंदों तक में उसका आभास स्पष्ट लगता है। चरित्र-चित्रण की दृष्टि से प्रायः इसके प्रमुख चरित्र उच्चकोटि के अंकित किये गये हैं जिनमें राधा और कृष्ण का चरित्र तो स्मरणीय है।

'प्रिय प्रवास' के अधिकांश स्थल प्रवाहमय खड़ी बोली में लिखे गये हैं, भले ही कहीं मिठास लाने के लिए ब्रज भाषा के शब्द भी रख लिये गये हों। इनका दूसरा प्रमुख काव्य 'वैदेही वनवास' है। उपन्यासवाले प्रसंग में भाषा का जो नाटक इन्होंने किया, काव्य के क्षेत्र में भी ये उससे अलग नहीं।

बोलचाल की भाषा में इन्होंने मुहावरों का प्रयोग कर विभिन्न विषयों पर रचनाएँ की जिनमें चोखे चौपदे सं० १९८९ में प्रकाशित हुआ जो प्रचलित बोलचाल की भाषा में है। पद्य प्रसून, जिसमें दोनों प्रकार की रचनाएँ हैं, सं० १९८२ में प्रकाशित हुआ।