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पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/५३

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कवि ]
[ 'हरिऔध'
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पर इस दर्द की दवा कौन करेगा, कौन इस बिगड़ी को बनावेगा, कौन हमारी नाड़ी टटोलेगा, कौन गिरती जाति को उठावेगा, कौन उजड़े घर को बसावेगा और कौन हमारी उलझी को सुलझावेगा? आँख बहुतों की ओर जाती है पर हृदय यही कहता है 'एक सच्चा कवि'। इस सच्चे कवि शब्द पर खटकना न चाहिये, हृदय में दर्द होने पर सच्चा कवि सभी हो सकते हैं। प्रतिभा किसी जातिविशेष और मनुष्यविशेष की बाँट में नहीं पड़ी है। हमारे उत्साही कविगण आवें और इस क्षेत्र में कार्य करें। उनके पुरुषार्थ और कवित्वबल से भारतमाता का मुख उज्ज्वल होगा और उनकी कीर्तिकौमुदी से वसुधा धवलित हो जावेगी। आज दिन यदि कोई महदनुष्ठान है तो यही, तपश्चर्या है तो यही कि जैसे हो वैसे जाति के कुरोग विदूरित किये जावें? कवि की प्रौढ़ लेखनी का प्रौढ़त्व और कवि की मार्मिकता का महत्त्व इसी में है कि वह प्रसुप्त जातियों को जगावे, उसके रोम-रोम में वैद्युतिक प्रवाह प्रवाहित करे और उसको उस महान् मंत्र से दीक्षित करे, जो उसको सगौरव संसार में जीवित रहने का साधन हो। एक दिन साहित्य-संसार श्रृंगार-रस से प्लावित था, उसी की आनन्द-भेरी जहाँ देखो, वहाँ निनादित थी। समय-प्रवाह ने अब रुचि को बदल दिया है, लोगों के नेत्र खुल गये हैं, कविगण अपना कर्त्तव्य अब समझ गये हैं। इस समय यदि आवश्यकता है तो तदीयता की आवश्यकता है। आज दिन भारतमाता यह कह रही है---

मन्मना भव मद्भक्त मद्यायी मां नमस्कुरु,
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज।

क्या उसका यह कथन सहृदय कविगण उत्कर्ण होकर सुनेंगे।

कवि-कर्म का यह पहला पहलू है। दूसरा पहलू उसका साहित्य सम्बन्धी है। मैं इस विषय में भी कुछ कथन कर अपना वक्तव्य समाप्त करूंगा। कवि कर्म बहुत दुसह है, जब तक सर्वसाधारण की दृष्टि