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पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/५९

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हिन्दी भाषा का उद्गम ] ६० [ 'हरिऔध' आदि कल्पोत्पन्न मनुष्यगण, ब्राह्मणगण, सम्बुद्धगण, और जिन्होंने कोई वाक्यालाफ श्रवण नहीं किया है ऐसे लोग, जिसके द्वारा बातचीत करते हैं, वही मागधी मूल भाषा है। 'पति सम्बिध अत्य' नामक ग्रंथ में लिखा है"मागधी भाषा देवलोक, नरलोक, प्रेतलोक और पशु-जाति में सर्वत्र प्रचलित है। किरात, अन्धक, योणक, दामिल प्रभृति भाषा परिवर्तनशील हैं; किन्तु मागधी आर्य और ब्राह्मणगण की भाषा है। इसलिये अपरिवर्तनीय और चिरकाल से समान रूपेण व्यवहृत है।" महारूप सिद्धिकार लिखते हैं- "मागधिकाय स्वभाव निरूत्तिया” अर्थात् मागधी स्वाभाविक भाषा ( अथवा मूल भाषा है )। अपने पाली भाषा के व्याकरण की अंग्रेजी भूमिका में श्रीयुत सतीशचन्द्र विद्याभूषण लिखते हैं-"धीरे-धीरे मागधी में, जो इस देश में बोली जाती थी, बहुत-से परिवर्तन हुए और अाजकल की भाषाएँजैसे बंगाली, मरहठी, हिन्दी और उड़िया इत्यादि उसी से उत्पन्न हुई।"* "जैनेरा अर्द्ध मागधी भाषा केई आदि भाषा वलिया मने करेन ।” "जैन लोग अर्ध मागधी भाषा को ही आदि भाषा मानते हैं।" (बँगला विश्वकोश, पृष्ठ ४३८) अब तीसरे सिद्धान्तवालों का विचार सुनिये। यह दल समधिक पुष्ट है । इसमें पाश्चात्य विद्वान् तो हैं ही, भारतीय विद्वानों की संख्या भी न्यून नहीं है।

  • In course of time this Magadhi-the spoken language of the country underwent immense changes, and gave rise to the modern vernaculars such as Bengali, Marhati, Hindi, Uriya etc.