पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/८

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अतुकांत वर्ण वृत्तों में संस्कृत की तत्सम बहुल पदावली में लिखित हिन्दी का सुन्दरतम मधुर काव्य है।

१९२० ई० के पश्चात् हरिऔध जी ने चौपदों की ओर ध्यान दिया। इनमें उर्दू की भांति कवि मुहावरों के प्रचुर प्रयोग की ओर दत्तचित्त हुआ है। बोल-चाल, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे और आधुनिक कवित्त, चौपदों के संग्रह हैं।

हरिऔध जी देश के नौनिहालों को भी नहीं भूले हैं। उन्होंने छोटे बच्चों के लिये भी बहुत सी कविताएँ लिखी हैं।

हरिऔध जी का भाषा पर हिन्दी के सभी साहित्यकारों से बढ़ कर अधिकार था। वे कठिन से कठिन हिन्दी लिख सकते थे-देखिये 'वेनिस का बांका' और 'प्रिय प्रवास'। सरल से सरल हिन्दी पर उनका अधिकार था---देखिये 'ठेठ हिन्दी का ठाठ' और 'अधखिला फूल' तथा बालकों के लिये लिखी गई कवितायें। वे मुहावरेदार भाषा के माहिर थे--देखिये उनके चौपदे। वे ब्रज भाषा और खड़ी बोली के समान रूप से श्रेष्ठ कवि थे। वे जहाँ मुक्तकों के सम्राट थे, प्रबन्ध की संयोजना में परम पटु थे। हिन्दी जगत ने दो बार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सभापति बनाकर उनका समादर किया था। 'प्रिय प्रवास' पर उन्हें हिन्दी का श्रेष्ठतम पुरस्कार मंगला प्रसाद पारितोषिक मिल चुका है।

आरा नागरी प्रचारिणी सभा ने उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ प्रदान किया था। साहित्य सम्मेलन ने उन्हें साहित्य वाचस्पति तथा भारत धर्म महामण्डल ने साहित्य रत्न की उपाधि से विभूषित किया था। हिन्दी संसार तो उन्हें 'कवि सम्राट' नाम से सम्मानित ही करता है।

महाकवि श्री हरिऔध का देहावसान ६ मार्च सन् १९४७ ई० को ८२ वर्ष के परिपक्व वय में होली के दिन उनके घर पर हुआ।

--केशवदेव उपाध्याय