खानखाना की उपरोक्त जीवन-कहानी पढ़कर कोई भी
निश्चित रूप से यह नहीं कह सकता कि ऐसी स्थिति का
मनुष्य भी एक सफल कवि हो सकता है। फिर भी, जैसा
कि पाठकों को आगे चल कर ज्ञात होगा, रहीम ने इसमें
आशातीत सफलता प्राप्त की है। रहीम के साहित्यिक
जीवन का परिचय बहुत संक्षिप्त रूप से हमें मिलता है।
इन्हें कभी भी साल-दो-साल शान्ति से बैठने को नहीं मिला।
जिस समय शाहज़ादा सलीम की शिक्षा का भार इनके
ऊपर था यह मौक़ा अवश्य अच्छा मिल गया था। इसी
काल में इन्होंने वाक़यात बाबरी का फ़ारसी अनुवाद कर
पाया था। इसके अनन्तर फिर समय नहीं मिला। क्षणिक
शान्ति में जो कुछ समय मिला उसी में इन्होंने कई छोटी-
छोटी पुस्तकों की रचना कर डाली। इनकी रचना में यह
एक अजीब बात पाई जाती है कि इन्होंने कहीं भी उसका
रचना-काल अथवा अपना नाम नहीं दिया है। इससे
रहीम ने कौन सी पुस्तक किस समय बनाई थी यह नि-
र्धारित करना एक असम्भव-सी बात है। इनकी रचित
सम्पूर्ण पुस्तकों के नाम भी इनकी रचना में कहीं पाए नहीं
जाते। अस्तु, हमें अनुमान तथा इतर प्रति लिपियों पर ही
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