है। सच पूछो तो रहीम ने उनका जीता-जागता चित्र ही खींच दिया है । महाकवि देवकृत "जातिविलास' में भी इसी प्रकार का वर्णन है। देवजी परवर्ती कवि हैं। सम्भव है कि इसे देखकर ही उन्होंने जातिविलास की रचना की हो । नगर-शोमा वर्णन में रहीम ने बड़ा मनोरंजक वर्णन किया है।
८ खानखाना कृत बरवै --यह ग्रंथ भी याक्षिक-त्रय को मिल गया है। इसमें कोई विषय-क्रम नहीं है । भिन्न-भिन्न विषयों के रचित १०१ बरवों का संग्रह है। कुछ बरवै फारसी के भी हैं । इनका नमूना भी पृष्ठ ५७ पर देखिए ।
९ वाक़यात बाबरी --यह तुर्की भाषा की पुस्तक का फ़ारसी में अनुवाद है । कहा जाता है कि यह अनुवाद ऐसा उत्तम बना है कि इसकी प्रशंसा बड़े-बड़े अंग्रेज़ विद्वानों तक ने की है।
इनके अतिरिक्त रहीम के हिन्दी के कुछ स्फुट छन्द और पद भी मिले हैं । वे भी सब इसीके अन्त में (देखो पृष्ट-संख्या ६२) संग्रहीत कर दिए गए हैं।
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