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वर्तमान युग में हिन्दी जाननेवाला शायद ही कोई ऐसा होगा जो 'रहीम' अथवा 'रहिमन' के नामसे परिचित न हो । यहाँ तक कि स्कूल के नीची कक्षा के विद्यार्थी भी इस नाम से परिचित हैं, और जैसा कि हमारा विश्वास है, सबको कम-से-कम इनके दो-चार दोहे अवश्य याद होंगे। हमारी समझ में इसका कारण इनकी सुमिष्ठ, सरल और सौजन्यपूर्ण रचना ही है।
रहीम के जीवन का परिचय देने के लिए हम सुविधानुसार इसको दो भागों में विभक्त करेंगे-एक उनका ऐतिहासिक जीवन और दूसरा साहित्यिक । इन्हींका वर्णन क्रमशः हम आगे देंगे। इनके ऐतिहासिक जीवन की अच्छी सामग्री प्राप्त हो चुकी है । इसका श्रेय काशी के बाबू ब्रज-रत्नदासजी को है । यहाँ हम जो कुछ रहीम के ऐतिहासिक जीवन के विषय कहेंगे, वह उन्हीं के कथित-जीवन के अधार पर होगा।
बैरमख़ाँ हुमायूँ का एक विश्वस्त नौकर था । हुमायूँ ने बाल्यकाल ही से उसपर अपनी कृपा-दृष्टि दिखलाई थी और धीरे २ बढ़ाकर ख़ानख़ाना की पदवी देकर एक उच्च