पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/६

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ऐतिहासिक-जीवन।


थी। बादशाह अकबर ने इनकी शिक्षा और पालन-पोषण का समुचित प्रबंध कर दिया और इसी समय से इनका विद्यार्थी-जीवन आरम्भ हुआ। इस काल में रहीम ने पूर्ण परिश्रम और अध्यवसाय से काम किया जिसके फल-स्वरूप ही इन्हें अरबी, फ़ारसी, तुर्की, संस्कृत और हिन्दी भाषा में समान योग्यता प्राप्त हो गई।

इनका अध्ययनकाल समाप्त हो जाने पर अकबर ने अपने एक उच्च पदाधिकारी खानेआज़म की बहिन माहबानू बेगम के साथ इनका ब्याह कर दिया और संवत् १६३३ वि० में गुजरात की सूबेदारी पर इनकी नियुक्ति कर दी।

अवस्था तथा जातीयता के कारण युद्ध-कार्य में इनकी तबियत खूब लगती थी। सं० १६३५ में गुजरात के विद्रोह में इन्होंने बड़ी वीरता और बुद्धिमानी से काम किया था। थोड़ी सेना से ही एक बड़ी भारी विद्रोहियों की सेना पर हावी हो गए और उसको ध्वस्त कर दिया। इसी के सन्मान-स्वरूप इन्हें ख़ानख़ाना की पदवी तथा पाँचहज़ार की मंसब दी गई।

इतने भारी पद पर नियुक्त होकर भी राजकाज में इनकी विशेष अभिरुचि न थी। इसी कारण अकबर ने सं० १६४० वि० में सुलतान सलीम की शिक्षा का भार इनपर सौंपा। बहुत सम्भव है कि जहाँगीर के हृदय में हिन्दी के प्रति प्रेम इन्हीं की शिक्षा के कारण हुआ हो। इसी सिलसिले में