सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२० राजसिंह [ साँतवा गुलाब-कैसे कहूँ ? रानी-कहो ठाकुर। गुलाब कहा है, इस काल युद्ध से जीते जी बचकर आना सम्भव नहीं है। रानी-क्षत्रिय को वीरगति प्राप्त होने से बढ़कर सौभाग्य क्या है। गुलाब-परन्तु वे द्विविधा में पड़े है। रानी-द्विविधा ? युद्ध यात्रा के समय क्षत्रिय को द्विविधा ? गुलाब-वे रात भर द्विविधा में रहे। रानी-छीः छीः रात भर ? क्या द्विविधा है, सुनूं तो मैं। गुलाब-आपकी द्विविधा है रानी। रानी-मेरी द्विविधा कैसी? गुलाब-वे कहते हैं, आप अभी युवा हैं, कच्ची उम्र है, संसार अभी देखा नहीं है। यदि कुछ उल्टा-सीधा हो गया तो आप कैसे कठिन क्षत्रिय-बाला का व्रतपूर्ण कर सकेंगी। रानीक्यों ? क्या मैं क्षत्रिय-बाला नहीं हूँ। गुलाब-आपकी यह आयु आनन्द उपभोग की है। रानी-पर क्षत्रिय-बाला जब चाहे आत्मोत्सर्ग कर सकती है। उनसे कहो वे निश्चित होकर शत्रु से लोहा लें और अपना कर्तव्य-पालन करें। मैं अपना कर्तव्य-पालन करूँगी।