सभी के परामर्श से यदुभानु को उस राज्य के सिंहासन पर बिठाया गया। यदुभानु ने अपने नाम पर वहाँ यदुगिरि की प्रतिष्ठा की, उसके बाद वह बहुत प्रसिद्ध हुआ।* नाभ के पुत्र प्रतिबाहु के बाहुबल नाम का एक लड़का पैदा हुआ। उसने मालवा के राजा विजय सिंह की लड़की कमलावती के साथ विवाह किया। उस विवाह मे विजयसिंह ने खुरासान के एक हजार घोडे, एक सौ हाथी, बहुत से हीरे-जवाहरात और सोने के साथ-साथ पाँच सो दासियां दी थी। बहुत से रथो के साथ स्वर्णजड़ित पलंग भी दिये। प्रमार वंश की राजकुमारी कमलावती से सुबाहु नामक एक लडका पैदा हुआ। घोडे से गिर जाने के कारण प्रतिबाहु के पुत्र बाहुबल की मृत्यु हो गयी। सुबाहु बाहुवल का लडका था। उसने अजमेर के चौहान वंशीय राजा नन्द की लड़की के साथ विवाह किया। उस चौहान राजकुमारी ने विप देकर अपने पति सुबाहु को मार डाला। सुबाहु के रिज नामक एक लड़का पैदा हुआ। उसने अपने पिता के राजसिहासन पर बैठकर बारह वर्ष तक राज्य किया। उसने मालवा के राजा वैरसी की लड़की के साथ विवाह किया। उसका नाम था सौभाग्य सुन्दरी। जब वह गर्भवती थी, उन दिनो में उसने एक स्वप् देखा कि मुझसे एक हाथी पैदा हुआ है। इस पर परामर्श देते हुए ज्योतिपियो ने कहा कि रानी से जो पुत्र उत्पन्न होगा, वह अत्यन्त पराक्रमी और शूरवीर होगा। उस रानी से जो लडका पैदा हुआ. पण्डितो के द्वारा उसका नाम गज रखा गया। जिस समय वह पूर्ण अवस्था में पहुँचा, उसके साथ पूर्व देश के राजा यदुभानु ने अपनी लड़की के विवाह का प्रस्ताव भेजा। वह मजूर किया गया। इन्ही दिनों में समाचार मिला कि समुद्र के समीपवर्ती राज्यों के म्लेच्छो की विशाल सेना आक्रमण करने के लिए आ रही है और उसमे चार लाख अश्वारोहियों का सेनापति खुराना का फरीदशाह भी है। उसी समय यह भी मालूम हुआ कि इस होने वाले भयानक आकमण से घबरा कर राज्य के लोग चारो तरफ भाग रहे हैं। इस प्रकार के समाचारो को सुनते ही राजा रिज ने तुरंत युद्ध की तैयारी की और अपनी सेना को लेकर वह हरियू नामक थान पर पहुँच गया। वहां से चार मील की दूरी पर शत्रु-सेना का शिविर था। दोनों ओर की सेनायें आक्रमण के लिए तैयार थीं। उसके फलस्वरूप भीषण युद्ध आरम्भ हुआ। अत मे आक्रमणकारी यवनों की पराजय हुई और उनके तीस हजार सैनिक युद्ध इस विषय मे भाटी वश के इतिहास मे जो उल्लेख मिलता है, वह अधिक सतोषजनक मालूम होता है। जसलमेर के किसी आदमी से यदि पूछा जाए कि यदुगिरि कहाँ पर है तो वह बता नहीं कता और न वह बिहाड के सम्बन्ध में कुछ जानकारी रखता है। परन्तु मि आरसकिन ने बाबरनामा नामक ग्रन्थ का जे अनुवाद किया है। उसमे यदुपुरी का उल्लेख किया गया है। सन् 1919 ईसवी की 17 फरवरी को बाबर ने सिधु नदी का पार किया और 19 फरवरी को इस नदी और नगर के बीच बिहाड नामक स्थान पर पहुँचा, जहाँ पर दो हजार पाँच सौ वर्ष पहले कृष्ण के वशज रहा करते थे। बाबरनामा में लिखा है कि उस स्थान से सात कोस की दूरी पर एक पहाड है। जाफरनामा अर्थात् तैमूर की ऐतिहासिक स्मृतियाँ नामक ग्रन्थ मे और कुछ दूसरी पग्नको में भी उस पहाड का नाम यदुगिरि लिखा गया है। पहले मैं पहाड के नाम से अपरिचित न था, लेकिन 24 याद खोज करने पर मालूम हुआ कि इस पहाड पर दो वश के लोग रहा करते हैं और वे कृष्ण के वशज हैं। उनमे एक वश यदु के नाम से और दूसरा वश जनहा के नाम से प्रसिद्ध था। दोनो वश इस पर्वत के निवासिया पर शासन करते थे। इन दिनो मे दोनो वशो की अनेक शाखायें हो गयी हैं। 1 3 4
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