में थे और वे अजमेर के साथ शामिल थे। शेखावटी का राज्य आमेर राज्य से अधिक शक्तिशाली था। उसकी चारों सीमायें इस प्रकार थी- दक्षिण में चाकस नामक दुर्ग था, पश्चिम में साँभर की झील थी, उत्तर की तरफ हस्तिना और पूर्व में दौसा तथा विसाऊ का इलाका था। वहाँ के बारह प्रधान सामन्त जिस भूमि के अधिकारी थे, वह कोटरी बन्द के नाम से प्रसिद्ध थी। उस इलाके की भूमि बहुत साधारण थी। देवती नाम का एक छोटा-सा प्राचीन राज्य था। राजोर उसकी राजधानी थी। उसमें वडगूजर जाति का राजा शासन करता था। कछवाहा राजपूत जिस प्रकार रामचन्द्र के वंशज कहे जाते हैं, बड़गूजर राजपूत अपने आपको रामचन्द्र के पुत्र लव का वंशज कहते हैं। बड़गूजर राजपूतों ने कभी भी मुसलमान बादशाहों को अपनी लड़कियाँ नहीं दी और इसीलिए राजपूतों में उनका स्थान अधिक सम्मानपूर्ण माना जाता था। जिस समय कछवाहा राजा ने मुगल बादशाह के वंश को लड़की दी थी और राजपूतों के मस्तक पर कलंक का टीका लगाया था, उस समय बड़गूजर राजपूतों ने अपनी स्त्रियों, बहनों और बेटियों की मर्यादा को सुरक्षित बनाये रखने के लिए उन्हें आग की जलती हुई होली में फूंक कर भस्मीभूत कर दिया था। कछवाहों ने बादशाह के साथ सामाजिक और वैवाहिक सम्बन्ध जोड़कर सांसारिक गौरव प्राप्त किया था। लेकिन बडगूजर राजपूतों ने अपने जीवन का भयानक त्याग और बलिदान करके अक्षय कीर्ति प्राप्त की थी। इसलिए शताब्दियों के बाद आज भी इस विशाल देश में कछवाहों की निन्दा और बड़गूजरों की प्रशंसा की जाती है। मनुष्य का गौरव सदा त्याग और बलिदानों से वढ़ता है। जिन दिनों में देवती-राज्य का बड़गूजर वंशी राजा अपनी सेना के साथ गंगा के समीप अनूप शहर में बादशाह की फौज की अधीनता में था, उस समय सवाई जयसिंह बादशाह के प्रतिनिधि की हैसियत से उसके राज्य में काम कर रहा था। बड़गूजर राजा ने राजोर की रक्षा का भार अपने छोटे भाई को सौंप दिया था। उसने एक दिन जंगल में जाने और शूकर का शिकार करने का इरादा किया। उसने भावज के पास जाकर जल्दी से भोजन करना चाहा। उसकी उतावली को देखकर भावज ने कहा- "मालूम होता है कि आप युद्ध में जयसिह को भाला मारने के लिए जा रहे हैं।" वड़गूजर राजा के हृदय में इस बात से एक ऐसा आघात पहुँचा कि वह अन्यमनस्क होकर कुछ देर तक सोचता रहा। उस स्त्री के द्वारा कही गयी बात का सम्बन्ध एक पुरानी घटना के साथ है। कछवाहों के पूर्वज धोलाराय ने नरवर से निकल कर बड़गूजरों के दौसा नामक नगर पर अधिकार किया था। भावज की बात सुनकर बडगूजर राजा के भाई ने उस घटना का स्मरण किया और उसने तुरन्त प्रतिज्ञा करते हुए कहा- "मैं अपने देवता की शपथ लेकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं जयसिंह के सीने में भाले का आघात करके ही आपके हाथों का भोजन पाऊँगा।" इस प्रकार प्रतिज्ञा करके स्वाभिमानी बड़गूजर अपने साथ दस सशस्त्र अश्वारोही वीरों को लेकर आमेर की तरफ रवाना हुआ और उसके समीप पहुँचकर उसने मुकाम किया। वहाँ पडे हुए उसको पूरा एक मास वीत गया। उसे अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का अवसर न 115
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