पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१२८

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अध्याय-57 ईश्वरीसिंह से जगतसिंह तक का इतिहास सवाई जयसिंह की मृत्यु के बाद उसका लड़का ईश्वरी सिंह जयपुर के सिंहासन पर बैठा। इन दिनों में जयपुर का राज्य भारतवर्ष के राज्य में विशाल और शक्तिशाली समझा जाता था। उस राज्य की सेना ने अनेक अवसरों पर अपनी शक्ति का परिचय देकर सम्मान प्राप्त किया था। इन दिनों में जयपुर राज्य की सीमा अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक बड़ी हो गयी थी। राजकोष में सम्पत्ति की कमी न थी। शासन में राजनीतिज्ञ और बुद्धिमान मन्त्री काम कर रहे थे। वहाँ की सेना भी शक्तिशाली थी। ईश्वरी सिंह के सिंहासन पर बैठने के बाद राज्य में कोई विशेष घटना नहीं हुई। सन् 1747 ईसवी में ईश्वरीसिंह अब्दाली की विशाल सेना के साथ युद्ध करने के लिए सतलज नदी के किनारे गया था। उस युद्ध में उसके पक्ष के प्रधान सेनापति कमरुद्दीन खाँ के मारे जाने पर ईश्वरीसिंह अपनी सेना के साथ भागा और जब वह लौटकर अपनी राजधानी में आया तो उसकी रानी ने युद्ध से भागने का समाचार सुनकर बहुत असन्तोष प्रकट किया। अपने पिता सवाई जयसिंह की तरह ईश्वरी सिंह बुद्धिमान और राजनीति कुशल न था। सिंहासन पर बैठने के बाद अपनी प्रजा को प्रसन्न और सन्तुष्ट करने के लिए वह कार्य कर सका। राज्य के सरदार और सामन्त भी उसके व्यवहारों और कार्यो से थोड़े ही दिनों में असन्तोष अनुभव करने लगे। ईश्वरीसिंह के लिए राज्य की इस प्रकार की परिस्थितियाँ आगे चलकर अच्छी साबित न हुई। मेवाड़ के इतिहास में लिखा जा चुका है कि दिल्ली के मुगल बादशाह के विरुद्ध होकर मेवाड़, मारवाड़ और आमेर राज्यों ने सन्धि की थी। उस सन्धि के अनुसार उन तीनों राजवंशों मे वैवाहिक सम्बन्ध भी होने लगे थे। उस सन्धि के परिणामस्वरूप मारवाड़ के राजा ने बादशाह अधीनस्थ के गुजरात के अनेक नगरों पर अधिकार कर लिया था, आमेर राज्य के सवाई जयसिंह ने उन सभी स्थानों को अपने राज्य में मिला लिया था, जो आमेर के आस-पास कुछ दूरी तक फैले हुये थे और उन्हीं दिनों में उसने शेखावाटी के राजा को कर देने के लिए विवश किया था। उस समय आमेर राज्य को अपने राज्य की सीमा का विस्तार करने के लिए सभी प्रकार का अवसर था और उसकी सीमा साँभर झील से लेकर जमुना नदी के किनारे तक पहुँच गई थी। इसका कारण यह था कि जो सन्धि हुई थी, उसने इन तीनों राज्यों को शक्तिशाली बना दिया था। लेकिन सन्धि के अनुसार वैवाहिक सम्बन्ध शुरू होने का परिणाम अच्छा साबित नहीं हुआ। आमेर और मारवाड़ के राजाओं ने मुगल बादशाह के वंश में अपनी लड़कियाँ देकर अपने जातीय गौरव को क्षीण बना लिया था। राजस्थान के दूसरे राजाओं ने भी इस 120