पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१५०

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पर आमेर के राजा ने उस पर आक्रमण किया। उस समय जो युद्ध हुआ, उसमें गया को यूनान के बादशाह मे महायता मिली और पठानों की मदद पाकर ऐसा नं आमेर की सेना को पराजित किया। वह लौटकर चली गयी। यहाँ का प्रत्येक सामन्त आमेर के राजा का आधिपत्य स्वीकार करता था। उनके यहाँ चांडों के जो बच्चे पैदा होते थे, वे कर के रूप में आमर राग्य को दे दियं आते थे। लेकिन शंखा नं आमेर राज्य के तीनों दुर्गों को छीन लिया था और पूर्ण रूप से अपनी स्यमंत्रता कायम की थी। इसी समय से शेखावटी राज्य स्वतंत्र हो गया और आमेर राज्य के साथ उसका कोई सम्बन्ध न रह गया था। सवाई जयसिंह के समय तक शेखायटी गग्य स्यतंत्र रहा। परन्तु सवाई जयसिंह ने दिल्ली के बादणाट के यहाँ सम्मानित होकर शेखावटी पर आक्रमण करने का इरादा किया और बादशाह की फांज लंकर उसने शंसायटी के ग्यतंत्र सामन्तों को युद्ध में पराजित किया। इसके बाद शंखावटी के सामन्तों ने आमेर की अधीनता फिर से स्वीकार की और वे लोग आमेर की कर देने लगे। शंखावटी राज्य में शेखा ने बहुत दिनों तक अपने प्रभुत्व को कायम गया। उसके मरने के बाद उसका लइका गयमा उसक स्थान पर अधिकारी हुआ। गयमल्न के गासन का कोई टल्लंस इतिहास में नहीं मिलता। रायमल्ल के बाद मजा अमरमर के सिंहासन पर बैठा। उसक तीन लडकं पैदा हुय-पहला नृनकरण, दूसरा रायमल और तीमग गोपाल। उसका बड़ा लड़का नूनकरण उसके अधीन तीन सौ ग्रामी का अधिकारी हुआ। रायरल को लाम्बी नामक और गोपाल की झाइली नाम की जागीर मिली। गयमल के द्वारा शेखावटी की उन्नति बड़ी तेजी के साथ हुई। शेखावटी के राजा नूनकरण का मंत्री देवीदास नाम का एक वैश्य था। यह अत्यन्त बुद्धिमान और दरदगा था। एक दिन अपने स्वामी के साथ विवाद करते हुए देवीदास ने कहा"पिता की सम्पत्ति पर अधिकार प्रान करने की अपेक्षा अपने बल-पारूप में अपनी उन्नति करना मनुष्य का श्रेष्ट कर्त्तव्य है। पिता की सम्पत्ति और जायदाद पर अधिकार पा जाने मे उसकी श्रेष्ठता का परिचय नहीं मिलता।" देवीदास की इस बात को सुनकर प्रतिवाद करते हुए नूनकरण ने कहा- "आपकी यह बात कुछ महत्व नहीं रखती। यदि ऐसी ही बात है तो हमारे भाई रायपल के पास लाम्बी में जाकर आप रहिये और अपनी श्रेष्ठता का परिचय दीजिये।" ननकरण ने दवीदाम को मंत्री के पद से हटा दिया। वह अमरसर को छोड़कर अपने परिवार के साथ लाम्बी चला गया। ठमके वहाँ पहुँचने पर रायमल ने बड़े सम्मान के साथ ठग लिया। लेकिन देवीदास इस बात को अनुभव करने लगा कि रायसल की आमदनी बहुत साधारण है । इसलिये मेरे यहाँ रहने से रायसल के ऊपर खर्च की वृद्धि हो जाएगी। उमने यह भी सोचा कि जिस उद्देश्य से अमरसर छोड़कर मैं यहाँ आया हूँ, उसमें यहाँ रहकर में सफलता प्राम न कर सकूँगा। इस प्रकार की बातें सोच-समझकर देवीदास ने रायसल से कहा इसी प्रकार की प्रथा मार्गन फारम में भी प्रचलित थी। टम गग्य के अन्तर्गत दो छोटे-छोटे राजा अथवा मामन्त दरवी पर गानाकानवेजपने गांडोंगयच्चों को करकेम्प में फारम राज्य में भेजते थे। रोडाटम ने लिया है कि आग्मेनिया मकर कपमएकवर्ष मेंबीमहजार घोडों के बच्चे वहाँ भेजे गये थे। 142