पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८३

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सामन्त कृष्ण सिंह को अपना प्रतिनिधि बनाया। उन सामन्तों के साथ जयपुर के राजा की तरफ से जो बातचीत आरम्भ हुई, उसके फलस्वरूप शेखावाटी के सामन्त अपनी सेनाओं के साथ उदयपुर के रास्ते में एकत्रित होने लगे। शेखावाटी के सामन्तों ने अनुभव किया कि नरसिंह और प्रतापसिंह को जयपुर की कैद से निकालने का यह एक अच्छा अवसर है। इसलिये उन लोगों ने उन दोनों की मुक्ति के लिये कृपाराम के सामने प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव के साथ-साथ अन्यान्य वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों पर बहुत समय तक परामर्श होने के वाद कृपाराम और शेखावाटी के सामन्तों के बीच एक नवीन राजनीतिक संधि का होना निश्चय हुआ। उस सन्धि के अनुसार जो अनेक बातें तय हुईं, उनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं: 1. इस सन्धि के अनुसार खण्डेला के अधिकारी नरसिंह और प्रतापसिंह को तुरन्त मुक्ति दी जाएगी। ___ 2 खण्डेला राज्य का अधिकार पूर्ववत् नरसिंह और प्रतापसिंह को लौटा दिया जाएगा। 3. शेखावत सामन्त जयपुर राज्य को अपना कर देते रहेंगे और उस अवस्था में सामन्तों के शासन में हस्तक्षेप करने का जयपुर को कोई अधिकार न होगा। इस प्रकार की सभी आवश्यक बातों का निर्णय करके जो सन्धि पत्र लिख कर तैयार किया गया, उस पर सभी सामन्तों के हस्ताक्षर हो जाने के बाद कृपाराम और कृष्णसिंह ने जयपुर की राजधानी में जाकर राजा जगतसिंह के सामने उस संधि पत्र को रखा। राजा जगत सिंह ने उसे स्वीकार किया और अपने हस्ताक्षर कर दिये। इसी समय शेखावाटी के सामन्तों ने जयपुर राज्य की सहायता के लिये दस हजार सैनिकों को एकत्रित करके देना मन्जूर किया। राजा जगत सिंह ने उस समय कहा कि सामन्तों की यह सेना हमारे राज्य के काम से जव तक जयुपर में रहेगी, उसका समस्त व्यय इस राज्य की तरफ से दिया जायेगा। इस संधि के सम्पन्न हो जाने के बाद दोनों पक्षों की तरफ से सन्तोप प्रकट किया गया। पोकरण का सामन्त सवाई सिंह अपने साथ धौंकल सिंह को लेकर पहले ही खेतड़ी नामक स्थान पर चला गया था। जयपुर के राजा के साथ शेखावाटी के सामन्तों की सन्धि हो जाने पर पोकरण के सामन्त का भतीजा श्याम सिंह खेतड़ी में गया और कृपाराम के संरक्षण से धौकलसिंह को लेकर शेखावत सामन्तों के पास पहुंचा। वहाँ पर स्वर्गीय राजा प्रताप सिंह की लड़की और मारवाड़ के राजा भीम सिंह की विधवा रानी आनन्दी कुवरि से उसकी भेंट हुई। रानी आनन्दी कुंवरि ने बालक धौकल सिंह को गोद लेकर उसे दत्तक पुत्र के रूप में स्वीकार किया। उस समय वहाँ पर रानी के राज्य के अनेक कर्मचारी और प्रमुख व्यक्ति मौजूद थे। इसके बाद सब लोग जयपुर की राजधानी में चले आये। वहाँ पर एक विशाल सेना मारवाड़ पर आक्रमण करने की तैयारी कर रही थी। यह सेना जयपुर की राजधानी से रवाना होकर खण्डेला से बीस मील दूर खाटू नामक स्थान पर पहुंची और वहाँ पर ठहर कर वह दूसरी सेनाओं के आने की प्रतीक्षा करने लगी। खण्डेला के नरसिंह और प्रतापसिंह कैद से छूट चुके थे। वे दोनों भी अपनी सेनाओं के साथ आकर वहाँ पर मिले। खण्डेला के भूतपूर्व राजा को जो कई ग्राम दिये गए थे और 175