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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८८

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चाहता था। इसलिये उसने पठान सेनापति को दो लाख रुपये देने का वादा करके उसे अपनी सहायता के लिए बुलाया। मन्नू और महताव खाँ दो पठान सेनापति अपनी फौज लेकर सीकर पहुँच गये। वहाँ के सामन्त लक्ष्मण सिंह ने पठानों की सेना के आ जाने पर खण्डेला पर आक्रमण करने की तैयारी की। यह समाचार हनुमन्तसिंह ने सुना। उसने अभयसिंह और प्रतापसिंह के स्वार्थों की रक्षा करने के लिए पठान सेनापति महताव खाँ को पचास हजार रुपये देने का वादा किया और इसके बदले में खण्डेला जाने और वहाँ पर सीकर का पक्ष लेकर युद्ध करने से उसने उसको रोका। लेकिन पठान सेनापति ने हनुमन्त सिंह के दिये गये प्रलोभन की परवाह न की और वह खुलकर लक्ष्मण सिंह के साथ हो गया। ___ यह देखकर हनुमन्त सिंह को पठान सेनापति महताव खाँ पर बहुत क्रोध मालूम हुआ और वह खण्डेला की रक्षा करने के लिये युद्ध की तैयारी करने लगा। पठानों की सेना को साथ लेकर लक्ष्मण सिंह ने पहले रेवासो और कुछ दूसरे नगरों पर अधिकार किया और इसके वाद अपनी विशाल सेनाओं के साथ खण्डेला नगर पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा। दूसरी तरफ हनुमन्त सिंह ने खण्डेला में रह कर वहाँ से दूरवर्ती कोटा के दुर्ग में खाने-पीने की सामग्री का प्रवन्ध किया। जब उसने सुना कि लक्ष्मण सिंह और पठानों की सेना खण्डेला नगर में आ गयी है तो वह अपने सैनिकों के साथ दुर्ग से निकला और उसने एक साथ शत्रुओं पर भयानक आक्रमण किया। उसके इस अचानक आक्रमण से शत्रु के बहुत से सैनिक मारे गये। इसके बाद हनुमन्तसिंह अपने सैनिकों को लेकर कोटा के दुर्ग में चला गया। वहाँ पर जाकर वह शत्रु सेना का संहार करने के लिये तरह-तरह के उपाय सोचने लगा। सामन्त लक्ष्मण सिंह के सीकर की जागीर खण्डेला राज्य की अधीनता में थी। इसलिए लक्ष्मण सिंह के खण्डेला पर आक्रमण करने से वहाँ के सभी सामन्त वहुत क्रोधित हुए और उनमें से कई सामन्तों ने अभय सिंह और प्रतापसिंह की सहायता करने का निश्चय किया। लक्ष्मण सिंह के पास धन की कमी न थी। उसने धन के बल पर ही पठान सेना की सहायता प्राप्त की थी और इस समय जो सामन्त अभय सिंह और प्रतापसिंह की सहायता के लिये तैयार हुए उनको भी उसने धमकियाँ देकर अपने पक्ष में कर लिया। यह देखकर दूसरे सामन्त भी चुपचाप हो गये और जो लोग अभयसिंह एवं प्रतापसिंह की सहायता करना चाहते थे, उन्होंने तटस्थ रहने में अपना कल्याण समझा । इन परिस्थितियों में भी कुछ सामन्तों ने जयपुर के राजा में प्रार्थना की कि सीकर के सामन्त लक्ष्मण सिंह का खण्डेला पर आक्रमण करना बहुत अन्यायपूर्ण है, परन्तु उनकी उस प्रार्थना का जयपुर के राजा पर कोई प्रभाव न पड़ा। बल्कि वहाँ के राजा ने यह भी कहा कि खण्डेला के अभय सिंह और प्रतापसिंह ने यदि भीमगढ़ पर किये गये आक्रमण के दिनों में गोगावतों के नगर को लूटा न होता तो खण्डेला पर इस प्रकार की आपत्ति कभी न आती और पठान सेना को हम लोगों ने स्वयं परास्त किया होता। ___ हनुमन्त सिंह कोटा के दुर्ग में पहुँच गया था। उसके साथ कई सौ शूरवीर सैनिक थे। लक्ष्मण सिंह ने खण्डेला नगर पर अधिकार करके कोटा के दुर्ग को घेर लिया। हनुमन्त सिंह उस दुर्ग के भीतर रह कर तीन महीने तक शत्रुओं के साथ युद्ध करता रहा। इसके वाद पठान सेना का आक्रमण जार पकडने लगा। उस समय हनुमन्त सिंह के सैनिकों ने उसको इस दुर्ग को छोड़कर खण्डेला के दुर्ग में चलने की सलाह दी। परन्तु हनुमन्त सिंह ने उसे स्वीकार 180