पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५

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किया और उसे जान से मार डाला। उमने स्वाभिमान और गौरव के साथ वावन वर्ष तक राज्य किया। देवराज की मृत्यु के पश्चात् उसका वड़ा लड़का मूंद उसके राज सिंहासन पर बैठा। उसने पिता का श्राद्ध कार्य किया। उसके बाद उसका राज्याभिषेक हुआ। उसने अड़सठ कुओं के जल से स्नान किया। अभिषेक के समय राज्य के पुरोहित ने आशीर्वाद दिया और सामन्तों ने उसको अपनी-अपनी भेंट दीं। सिंहासन पर बैठने के बाद मूंद ने अपने पिता का बदला लेने के लिए तैयारी की। जिन लोगों ने देवराज को मारा था, वे पहले से ही सतर्क थे। मूंद ने उन पर आक्रमण करके उनके आठ सौ सैनिकों का संहार किया। मूंद के वाछू नाम का एक लड़का पैदा हुआ। जव उसकी अवस्था चौदह वर्ष की थी, पट्टन के राजा सोलंकी राजपूत बल्लभसेन ने उसके साथ अपनी लड़की का विवाह करने के लिए नारियल भेजा। इसके पश्चात् सोलंकी राजकुमारी के साथ राजकुमार वाछूराव का विवाह हुआ। मूंद के परलोक यात्रा करने पर सम्वत् 1035 श्रावण कृष्ण पक्ष द्वादशी शनिवार के दिन वाछूराव सिंहासन पर बैठा। उसके पाँच बालक पैदा हुए- 1. दूसा 2. वापेराव 3 सिंह 4. इनवे और 5. मूलअपसा। इन पाँचों लड़कों के वंशधर कई शाखाओं में विभक्त होकर प्रसिद्ध हुए। एक घोड़ों का व्यवसायी अपने साथ एक सौ चोड़े लिये जा रहा था। उन घोडो में एक चोड़ा बहुत श्रेष्ठ था। उस व्यवसायी ने एक लाख रुपये में उसको बेचने का निश्चय किया। सिंधु नदी की पश्चिमी सीमा पर रहने वाला गाजीखाँ नाम का एक पठान उस बोड़े का मालिक था। दूसा ने अपनी सेना लेकर गाजी खाँ पर आक्रमण किया और उसको मारकर वह उसके उस श्रेष्ठ घोड़े को अपने साथ ले आया। सिंह के एक बालक पैदा हुआ, उसका नाम सच्चाराय था। उसके पुत्र वल्ला के रत्न और जग्गा नामक दो लड़के पैदा हुए। उन्होंने मन्डोर के परिहार राजा जगन्नाथ पर आक्रमण किया और उसके पाँच सौ ऊँटों को जीतकर अपने राज्य में ले आये। सिंह के वंशज सिंहराव राजपूत के नाम से प्रसिद्ध हुए। वापेराव के दो वालक हुए। एक का नाम था, पाहुर और दूसरे का नाम था,मॉदन । पाहुर के विरम और तोलर नामक दो लड़के हुए। उनके वंशज पाहुर राजपूत के नाम से प्रसिद्ध हुए। पाहुर राजपूतों ने जोहिया के समस्त नगरों से देवीछाल तक अधिकार कर लिया और पूगल में राजधानी बनाकर वहाँ पर बहुत से कुएँ खुदवाये। ये कुएँ पाहुर कूप के नाम से प्रसिद्ध है। मारवाड़ के नागौर जिले में खाचो के करीबी खींची वंश के लोग रहते थे। उनमें जिद्रा नामक एक आदमी बड़ा साहसी था। उसने पूगल की सीमा तक पहुँचकर लूटमार की और जयतुग भट्टियों का सर्वनाश किया। इन लुटेरों से बदला लेने के लिए दूसा अपने साथ कुछ साहसी वीरों को लेकर रवाना हुआ और उनके नगरों में पहुँचकर उसने ना मा लुटेरो का सर्वनाश किया। 19