पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५१

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आमेर राजधानी में रह सकें तो मैं आपको सैनिकों और सेवकों के खर्च में पांच सौ रुपये रोजाना के हिसाब से दूंगा।" बुधसिंह का चाचा जगतसिंह सैयद वन्धुओं की सेना के साथ युद्ध करते हुए मारा गया था और उस युद्ध में जिसने अपने प्राण देकर बुधसिंह की रक्षा की थी, उसका एक भाई राव बुधसिंह के साथ आमेर राजधानी में इस समय मौजूद था। राजा जयसिंह ने आमेर राजधानी में रहने के लिए बुधसिंह से जो प्रस्ताव किया था, उसमें उसका पड़यंत्र क्या था, यह उससे छिपा न रहा। उसने गुप्त रूप से एक पत्र बूंदी भेजा और उसमें उसने लिखा कि वेगू वाली रानी को अपने दोनों पुत्रो के साथ तुरन्त बूंदी से अपने पिता के यहाँ चले जाना चाहिये। ___इसके बाद जगतसिंह के भाई ने आमेर राजधानी से वाहर राव वुधसिंह से छिपकर वातचीत की और उसने वुधसिंह को बताया कि राजा जयसिंह ने आमेर राजधानी में रहने के लिए जो प्रस्ताव किया है, उसमें एक भयानक पड़यंत्र है और उस पड़यंत्र के द्वारा आप का विनाश किसी न किसी तरह निश्चित है। इस प्रकार विश्वासघात की बात को सुनकर वह अपने तीन सौ हाड़ा राजपूतों के साथ जयपुर छोड़कर रवाना हुआ। वह बूंदी की तरफ जा रहा था। उसके पंजोला नामक स्थान पर पहुंचते ही राजा जयसिंह की आज्ञानुसार जयपुर के पाँच प्रधान सामन्तों ने सेनाओं के साथ उस पर आक्रमण किया। वह अपने तीन सौ राजपूतों के साथ घेर लिया गया। राव वुधसिंह ने विना किसी घबराहट के आक्रमणकारियों के साथ युद्ध करना आरम्भ किया। इस युद्ध में जयपुर राज्य के ईशरदा, मेवाड़ और भावर आदि के पाँच सामन्तों के साथ कितने ही सरदार मारे गये। उस स्थान पर उन सामन्तों के जो स्मारक वने, वे अब तक मौजूद हैं। इस युद्ध में बुधसिंह के चाचा का वह भाई भी मारा गया, जिसने पहले से ही जयसिंह के पड़यंत्र को समझकर राव बुधसिंह को सचेत किया था। इस युद्ध में राव वुधसिंह की विजय हुई। लेकिन उसके साथ के बहुत से हाड़ा राजपूत मारे गये इसलिये अब उसके साथ जो सैनिक वाकी रह गये थे, उनकी संख्या बहुत कम थी। राव बुधसिंह को मालूम हो गया कि उसके विरुद्ध इसी प्रकार का पड़यंत्र वृंदी में भी पैदा कर दिया गया है। इसलिए वह अपने साथ के थोड़े से सैनिकों को लेकर वृंदी न जा सका और वह उस स्थान से पहाड़ी रास्तों की तरफ चला गया। जयसिंह ने राव बुधसिंह को भगाकर करवर के सामन्त दलेलसिंह के साथ अपनी लड़की का विवाह किया और उसको वूदी के सिंहासन पर बिठाया। ___ यह पहले ही लिखा जा चुका है कि कोटा और बूंदी में शत्रुता पैदा हो गयी थी। यद्यपि उन दोनो राजवशों का मूल आधार एक ही था और बूंदी के राजवंश से निकल कर उसी वंश के लोगों ने कोटा के राजवंश की प्रतिष्ठा की थी। इस प्रकार दोनों राजवंशों के पूर्वज एक ही थे। फिर भी उन दोनों मे जो शत्रुता पेदा हुई, उसके कारण वे दोनों एक दूसरे का विनाश करने मे लगे थे। राव वुधसिंह को जयसिंह के द्वारा पराजित देखकर कोटा के राजा भीमसिंह को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने मारवाड़ के राजा अजितसिंह और दिल्ली के दानो संवद बन्धुओ के साथ मित्रता कायम की। एवं उनकी सहायता से उसने भरवार और हाड़ोती आदि नगरो मे अपने आधिपत्य का विस्तार आरम्भ किया। 243