पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५५

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अधिक देर न थी। यह देख कर उसके सामन्तों ने समझाते हुए उससे कहाः "अगर आप जीवित रहेंगे तो किसी समय भी दी पर अधिकार हो सकता है। लेकिन अगर आप इस युद्ध में मारे गये तो भविष्य की समस्त आशायें समाप्त हो जायेंगी। इसलिए आप युद्ध को बन्द कर दें।" उम्मेद सिंह ने अपने सामन्तों की इस वात को सुना। उसकी कुछ भी समझ मे न आया। इसलिए अपनी अन्तरात्मा में वेदना को रख कर बाकी बची हुई सेना के साथ युद्ध क्षेत्र से हटकर उम्मेद सिंह सवाली नाम की घाटी की तरफ चला आया। वहाँ से इन्द्रगढ़ अधिक दूर न था। इसलिए उम्मेद सिंह अपने जख्मी घोड़े को विश्राम देने के लिए उससे उतर पड़ा। उसके उतरने के कुछ देर बाद उसका घोड़ा गिर गया और उसकी मृत्यु हो गयी। यह देखकर उम्मेद सिंह का हृदय विह्वल हो उठा। वह घोड़े के सिरहाने बैठकर रोने लगा। उस घोड़े का नाम हुन्जा था। वह घोड़ा ईराक देश का था। दिल्ली के बादशाह ने उम्मेद सिंह के पिता राव वुधसिंह को वह घोड़ा उपहार में दिया था और बुधसिंह ने उस पर बैठकर अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की थी। उम्मेद सिंह ने जब बूंदी के राज सिंहासन पर बैठने का अधिकार प्राप्त किया तो उसने सबसे पहले इस घोड़े की एक प्रस्तर मूर्ति बनवा कर बूंदी राजधानी के चौक में स्थापित की।* घोड़े के मर जाने के बाद बहुत दुःखी होकर उम्मेद सिंह इन्द्रगढ़ गया। इस इन्द्रगढ़ का राजा बूंदी राज्य का प्रधान सामन्त था। उसने राजभक्ति को ठुकराकर और अवसरवादी बनकर आमेर के राजा की अधीनता स्वीकार की थी। इस बात को समझते हुए भी उम्मेद सिंह उसके पास गया। इन्द्रगढ़ के राजा ने उम्मेद सिंह के मॉगने पर एक घोड़ा नहीं दिया और उम्मेद सिंह को इन्द्रगढ़ से चले जाने के लिए उसने साफ-साफ कहा। इन्द्रगढ़ के राजा से उम्मेद सिंह को इस प्रकार की आशा न थी। उसके इस दुर्व्यवहार से अत्यन्त दु:खी और क्रोधित होकर उसने इन्द्रगढ़ में पानी तक नहीं पिया और वहाँ से वह करवान की तरफ चला। वहाँ का राजा इन्द्रगढ़ के राजा की तरह अवसरवादी और विश्वासघातक न था। उम्मेद सिंह के आने का समाचार पाकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और अपने स्थान से चलकर वह उम्मेद सिंह के पास जाकर मिला। इसके बाद वह उसे अपने यहाँ ले गया। उसने उम्मेद सिंह को एक घोड़ा देकर आवश्यकता के समय सभी प्रकार की सहायता करने का वादा किया। उम्मेद सिंह इस बात को समझता था कि जयपुर की सेना के साथ इस समय युद्ध करना असम्भव है। इसलिए उम्मेद सिंह ने अपने साथ के हाड़ा राजपूतो को विदा कर दिया और कहा :"इस समय आप लोग अपने-अपने स्थान को जावें, फिर कभी अवसर मिलने पर आप लोगों की सहायता से बूंदी राज्य को प्राप्त करने की कोशिश करूँगा।" इस प्रकार कहकर और साथ के लोगों को विदा करके उम्मेद सिह चम्बल नदी के किनारे रामपुरा नामक स्थान के एक प्राचीन और टूटे-फूटे महल में जाकर रहने लगा। * मैंने हुन्जा घोडे की प्रस्तर मृति का देखकर आदर पूर्वक उसको नमस्कार किया था। अगर मैं हाड़ा लोगों के बीच में रहता तो प्रत्येक सैनिक उत्सव के समय राजपूतों की तरह उस मूर्ति के गले में मान्ना पहनाता। 247