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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२६३

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सम्बन्धी कुछ अनुभव न थे। इसलिये उसकी अनभिज्ञता का लाभ उठाकर राज्य के सामन्त और अधिकारी विशन सिंह को ऐसी बातें समझाने लगे जिनसे उनके स्वार्थो का सम्बन्ध था। उन लोगों ने उम्मेदसिंह के विरुद्ध भी बहुत सी बातें विशन सिंह से कही और उम्मेद सिंह के प्रति उसमें अविश्वास पैदा करने की चेष्टा की। विशन सिंह अभी तक एक नवयुवक था। उसने राज्य के अधिकारियों पर विश्वास किया और उम्मेदसिंह से घृणा करने लगा। सामन्तों और अधिकारियों के कहने से विशन सिंह ने एक सन्देश भेजकर उम्मेदसिंह से कहा : "आप बूंदी का राज्य छोड़कर वाराणसी में जाकर रहिये।" उम्मेद सिंह बिना किसी विरोध के वाराणसी जाने के लिये तैयार हो गया। यह वात राजस्थान के दूसरे राजपूतों और राजाओं को मालूम हुई तो उन्होंने बहुत खेद प्रकट किया। इसलिये कि वे सभी उम्मेद सिंह के प्रति वडी श्रद्धा रखते थे। विशन सिंह के इस सन्देश को जानकर दूसरे राज्यों के राजा और सामन्त उम्मेद सिंह को अपनी राजधानियों में ले जाने के लिये आग्रह करने लगे। आमेर के राजा प्रताप सिंह ने भी उम्मेद सिंह से आमेर की राजधानी में जाकर रहने के लिये प्रार्थना की। उम्मेद सिंह ने प्रताप सिंह की बात को स्वीकार कर लिया और वह बूंदी राज्य को छोडकर आमेर चला गया। प्रताप सिंह ने उम्मेद सिंह को आमेर में रखकर सभी प्रकार उसकी सेवाएँ की और एक दिन उसने अपना भक्तिभाव प्रकट करते हुए उम्मेदसिंह से कहा : “यदि आपके हृदय में अपने राज्य के प्रति कुछ भी लालसा हो तो आप मुझे आज्ञा दीजिये। मैं जयपुर की सेना लेकर बूंदी और कोटा को परास्त करूँगा और दोनों राज्यों का अधिकार आपको सौंप दूंगा।" प्रताप सिंह की इन वातों को सुनकर श्री जी ने गम्भीर होकर किन्तु प्रसन्नता के साथ कहा "ये दोनों राज्य तो मेरे ही हैं। एक में मेरा पौत्र और दूसरे में मेरा भतीजा राज्य करता है।" यह कहकर श्री जी ने मुस्कुराहट के साथ प्रतापसिंह की तरफ देखा। उस अवसर पर वहाँ और भी लोग बैठे थे। उन सभी लोगों ने श्री जी की बात को सुना और प्रसन्न होकर श्री जी को धन्यवाद दिया। उम्मेद सिंह ने आमेर राज्य में जाने के बाद कोटा के मन्त्री जालिम सिह से विशन सिंह के सन्देश का जिक्र किया। जालिम सिंह बूंदी गया और उसने विशन सिंह के साथ बातें की। उस समय उसकी समझ मे आया कि स्वार्थी सामन्तों के भड़काने से मैने इस प्रकार अज्ञानता से भरा हुआ सन्देश अपने पितामह के पास भेजा था। यह सोचकर कि मैंने एक कलंकपूर्ण कार्य किया है, वह लज्जित हुआ और उसने जालिम सिंह से कहा कि में अपने अपराध की क्षमा मांगने के लिये अपने पितामह के दर्शन करना चाहता हूँ। विशन सिंह की वात को सुनकर जालिम सिंह ने वृद्ध श्री जी को आमेर से वुलाने के लिये लाल जी नाम के एक पण्डित को भेजा। उम्मेद सिंह के अन्त:करण मे अव भी अपने पौत्र के प्रति स्नेह का भाव था। लाल जी पण्डित के साथ वह आमर से बूंदी आ गया। अपराधी विशनसिंह ने श्री जी के पास जाकर उनके चरणो को स्पर्श किया। उस समय वहाँ पर बैठे हुए लोगों के नेत्रों में आंसू आ गये। विशनसिह को अपनी छाती से लगाकर वृद्ध उम्मेद सिंह ने अपने नेत्रो से ऑसू वहावे और 257