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राज्य का उत्तराधिकारी राजकुमार किशोर सिंह दुर्ग के महल में रहकर अपने भाइयों के साथ उन दिनों मे क्या सोच रहा था, यह नहीं कहा जा सकता। कोटा पहुँचने के वाद मुझे मालूम हुआ कि पृथ्वीसिंह और गोवर्धन दास ने मिल कर नवीन महाराव को अपने अनुकूल बनाने की पूरी कोशिश की और उन दोनों ने विशन सिंह को अपने इस प्रयास में शामिल नहीं किया। इस प्रकार की जो योजना चल रही थी, उसकी जानकारी जालिम सिंह को कुछ नहीं थी। महाराव उम्मेद सिंह की मृत्यु के बाद जालिम सिंह को भयानक रोग हो गया। उसके इस रोग को देखकर जो लोग जालिम सिंह के विरोधी थे और राज्य मे उसके अधिकार को नष्ट कर देना चाहते थे, वे बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन कुछ दिनों के बाद जालिम सिंह को उस रोग से मुक्ति मिल गयी तो जो लोग उसकी बीमारी के दिनों में प्रसन्न हो रहे थे, उनकी प्रसन्नता खत्म हो गयी। जालिम सिंह की बीमारी के दिनों में विरोधियों ने अपनी जिस योजना का कार्य आरम्भ किया था, वह अप्रकट न रह सकी। लेकिन वृद्ध जालिम सिंह को उस समय भी उसकी जानकारी हुई। संधि हो जाने के बाद जो दो शर्ते दोनों पक्षों के प्रतिनिधियो की मंजूरी से संधि में शामिल की गयी थीं और जिनके अनुसार जालिम सिंहू के उत्तराधिकारियों को सदा के लिए अधिकारी बना दिया गया था, छिपे तौर पर उनका विरोध हुआ और महाराव के दरवार में पड़यंत्र चलने लगा। जालिम सिंह के दोनों लड़कों के वीच संवर्प पैदा कराने की पूरी कोशिश की गयी। संधि के अनुसार माधव सिंह अपने पिता का उत्तराधिकारी था। इसका निर्णय संधि की अन्तिम दोनों शर्तों के द्वारा हो चुका था और मैं उसका मध्यस्थ था। राज्य मे जालिम सिंह के विरुद्ध जो पड़यंत्र रचा गया, उसका साफ-साफ अभिप्राय यह था कि संधि के द्वारा नवीन महाराव किशोर सिंह को माधव सिंह के हाथ की कठपुतली उसी प्रकार बनाने की चेष्टा की गयी है, जिस प्रकार जालिम सिंह के समय स्वर्गीय महाराव की हालत थी। इसलिए इसका विरोध होना चाहिये। विरोधी लोग जालिम सिंह और उसके उत्तराधिकारियों के इस अधिकार को सदा के लिए नष्ट कर देना चाहते थे। उनके पडयंत्र का यही एक अभिप्राय था। सन् 1817 ईसवी के संगठन का आन्दोलन न केवल राजनीतिक था बल्कि वह पूर्ण रूप से नैतिक था। उसके पहले की अवस्था सम्पूर्ण राजस्थान में वड़ी भयानक थी। लुटेरों के द्वारा चारों ओर आक्रमण, विध्वंस ओर विनाश हो रहे थे। विना संगठित शक्तियो के उनको रोक सकना सम्भव नहीं था। भारत में आये हुए अंग्रेजों ने राजस्थान की इस दुरवस्था का अनुभव किया और राजस्थान के समस्त राजाओं को एक सूत्र में बाँधकर आक्रमणकारियों के विरुद्ध युद्ध आरम्भ किया। इसका परिणाम यह निकला कि न केवल राजस्थान मे वल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष मे शान्ति कायम हो गयी। इस संगठन और सहयोग में कोटा राज्य के साथ हमारा सम्पर्क हुआ। इस संपर्क मे कोटा राज्य की तरफ से हमने भीतर और बाहर जालिम सिंह को ही पाया। इसीलिए जव संधि हुई तो जालिम सिंह के भविष्य का निर्णय उसके द्वारा होना नैतिक दृष्टि से भी आवश्यक था। इसीलिए बाद मे जैसा कि पहले लिखा जा चुका है। दो शर्ते दोनो पक्षों की मंजूरी लेकर सधि में जोडी गयी। इन दोनों शर्तों का महत्व उनके परिणाम को देखकर नहीं बल्कि उस समय हमारा कर्त्तव्य क्या था, इसे सामने रख कर हमें मालूम होता है। 309