की मूर्ति है। इन सब के बाद महादेव की प्रतिमा है, वह विशाल आकार-प्रकार में है। उसके पास ही महादेव की सवारी में काम आने वाले साँड़ की प्रतिमा है। इन लव के साथ-साथ इस कमरे में लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्ति है। इस बड़े कमरे में जितनी भी प्रतिमायें हैं, वहुत अच्छे पत्थरों से बनी हुई हैं और हिन्दुओं के ग्रन्थों में उनके जिस प्रकार वर्णन किए गए हैं, उसी रूप में शिल्पियों ने उनको तेयार किया है। सभी मूर्तियाँ देखने में प्रिय मालूम होती हैं। इस बड़े कमरे और उसकी मूर्तियों को देखने के बाद नै राजा अजित सिंह के बाग और महल को देखने गया। वह महल अत्यन्त सुन्दर और अनेक प्रकार की सुविधाओं के साथ बना हुआ है। उसकी बहुत-सी बातें अत्यन्त प्रशंसा के योग्य हैं। महल के भीतर छोटे और बडे बहुत कमरे हैं। वे कमरे विभिन्न प्रकार से बने हुए हैं। सभी कमरों में स्तम्भ हैं और प्रत्येक स्तम्भ निर्माण में शिल्पियों ने अपनी अद्भुत योग्यता का परिचय दिया है। वे सभी स्तम्भ सुन्दरता के साथ-साथ दृढ़ता भी रखते हैं। महल में जितनी भी दीवारें हैं, उनमें बहुत श्रेष्ठ शिल्पकारी देखने को मिलती है। महल की ये सभी बातें अत्यन्त आकपंक और प्रशंसनीय हैं। महल के अन्तःपुर में जहाँ स्त्रियाँ रहती हैं, उन स्थानों में अत्यन्त वारीक बुनावट के कपड़े के बने हुए परदे पड़े हुए हैं। इन परदों का कदाचित् उद्देश्य यह है कि महल में आने वाला कोई बाहरी व्यक्ति उन स्त्रियों को देख न सके। इसके साथ ही महल के अन्तःपुर का भाग अत्यन्त रमणीक बना हुआ है। उस सम्बन्ध में अगर यह कहा जाये कि सम्पूर्ण महल में अन्तःपुर का भाग सबसे अधिक अच्छा है तो अतिशयोक्ति न होगी। राजा अजितसिंह का बाग अधिक वड़ा नहीं है। लेकिन वह जिस दीवार से विरा हुआ है, वह दीवार वहुत मजबूत बनी हुई है। वाग गरमी के दिनों में भी बहुत शीतल रहता है। वहाँ पर अनेक प्रकार के जलाशय हैं और कृत्रिम झरनों से बरावर पानी निकला करता है। इस प्रकार जलाशयों और झरनों के कारण वह वाग गर्मियों में भी शीतल ओर विश्राम के लिये बहुत अच्छा रहता है। राजा अजितसिंह का यह वाग अपनी बहुत सी अच्छाइयों के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ पर उसकी कुछ बातों का जिक्र करना आवश्यक जान पडता है। इस बाग में अनेक प्रकार के वृक्ष हैं और वे सभी फल देने वाले हैं। कुछ ऐसे वृक्ष भी हैं, जो देखने में बहुत बड़े हैं। परन्तु उनके फलों की कोई विगंप उपयोगिता नहीं है। छोटे वृक्षों में स्वर्ण चम्पक नाम के कुछ पेड़ हैं, जिसकी सुगन्धि बहुत तीव्र और असहा होती है। यदि उसके फूलों को लेटने के पलंग पर रखकर सोया जाये तो उसकी तेज सुगन्ध से मस्तक मे पीडा होने लगती है। इस बाग में अनार के बहुत से वृक्ष हैं। उनके साथ-साथ सीताफल के भी अनेक वृक्ष यहाँ पर पाये जाते हैं। यहाँ पर बहुत से वृक्ष केले के हैं। इन पंडों के बड़े-बड़े पत्तों के हिलने से शीतल वायु मिलती है। मोगरा, चमेली और रातरानी के फूलों की सुगन्धि से वाग सदा सुहावना वना रहता है। फूल वाले वृक्षों में बारह मासा नाम के कुछ पंड यहाँ पाये जाते है। यह वृक्ष वर्प के वारह महीनो में बरावर खिला करता है। इसीलिये इस वृक्ष को बारह मासा 401
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