इसके साथ ही मैंने यह जरूर किया कि अपने यहाँ की टेवुल-कुर्सी और अपने पीने की शराव मैंने राजा मानसिंह के महल में भेज दी। मेरे महल में पहुंचने पर राजा ने बड़े सम्मान के साथ मुझे ग्रहण किया और भोजन करने के लिए वह मुझे लेकर महल के भीतर की तरफ चला। भोजन-घर में पहुंचकर मैंने देखा कि पुलाव, मॉस और मिष्ठान खाने की बहुत-सी चीजें तैयार करायी गयी हैं। मेरे पहुँचने पर भोजन की वे सभी चीजें चाँदी के पात्रों मे परोसी गयीं। उन चीजों को देखकर यह आभास होता था कि वे सभी स्वादिष्ट और खाने में बहुत अच्छी होगी। शिखर के उत्तरी भाग में भोजन-घर वना हुआ था और उसका नाम मान महल रखा गया है। राज दरवार की तरह इस मान महल में भी बहुत से स्तम्भ बने हुए हैं। मुझे मालूम हुआ कि शीतकाल के आने पर वहाँ से अस्सी मील दूर कमलमीर के दुर्ग का ऊपरी भाग दिखायी देता है। 16 नवम्बर-आज का दिन राजा मानसिंह से भेंट करने के लिए पहले से ही निश्चित हो चुका था। राजा मानसिंह ने मेरे कैम्प के पास ही अपना कैम्प भी लगाया था। उसका खेमा बहुत लम्बा चौड़ा और लाल रंग का था। वह देखने में एक महल की तरह विशाल और बड़ा श। उसके चारों तरफ कपड़े की एक दीवार सी बनी हुई थी और उसके बीचो बीच राज- सिंहासन रखा था। उस राज-सिंहासन के ऊपर छत्र लगाया गया। दोपहर के बाद लगभग तीसरे पहर महल और दुर्ग मे एक साथ जोर का कोलाहल मचा। नगाड़े के वजने की जोरदार आवाजें कानों मे आने लगी। राज्य की तरफ से मुनादी की गयी थी कि आज महाराज फिरंगी वकील से मुलाकात करने जायेगे।" जव मुझे मालूम हुआ कि मुलाकात करने के लिये राजा अपने पूरे वैभव के साथ आ रहा है तो मैं भी अपने आदमियो के साथ राजा से भेंट करने के लिए तैयार हुआ और अपने घोड़े पर चढ़कर मैं आगे की तरफ बढ़ा। कुछ दूर मार्ग में जाकर मैंने राजा मानसिंह से मुलाकात की और कुशल समाचार उससे पूछकर में अपने मुकाम पर लौट आया। इसके बाद अपने मुकाम पर राजा के आने पर मैंने अत्यनत सम्मान के साथ उससे मुलाकात की। राजा के आने पर मेरे साथ के सैनिकों ने अपने हथियारों को नीचा करके उसके प्रति सम्मान प्रकट किया। यह देखकर राजा को वडी प्रसन्नता हुई। राजा मानसिंह ने एक घंटे तक मेरे यहाँ बैठकर बातें की। इसके बाद जब वह लौटकर जाने के लिये तैयार हुआ तो मेने हीरे और रत्नों के आभूपण, सुनहले काम के वस्त्र, बहुमूल्य शाल और कीमती चीजें एवम् उन्नीस ढाले राजा को भेट में दीं। इनके साथ-साथ इंगलैंड के बने हुए कुछ हथियार, एक दूरवीन और कुछ दूसरी चीजें भी मैंने उसको उपहार में दीं। भेंट की इन चीजों के साथ- साथ मैंने एक सजा हुआ हाथी और एक घोड़ा भी राजा को दिया। अपने यहाँ से विदा करते समय मैंने बड़े सम्मान के साथ उसको सलाम किया और उसने मुझसे हाथ मिलाया। 17 नवम्बर- मारवाड से आज मेरे विदा होने का दिन था। इसलिये मैं राजा मानसिंह के पास गया। इस अन्तिम मुलाकात में राजा के साथ बहुत देर तक मेरी बातें होती रहीं। वातचीत करते हुए मैंने राजा को विश्वास दिलाया कि आप अपने पुरुषार्थ, विक्रम और चरित्र बल से अपनी समस्त कठिनाईयो पर विजय प्राप्त करेंगे। राजा मानसिंह ने अपनी जिन परिस्थितियों 403
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४०७
दिखावट