नगर था। कहा जाता है कि भूकम्प के आने से यह ग्राम विलकुल नष्ट हो गया था। उसके बाद यहाँ की हालत सुधर नही सकी। इसीलिये वह आज तक एक साधारण ग्राम के रूप मे दिखायी देता है। इस ग्राम में इस समय भी गिरी हुई दशा मे जो फाटक देखने को मिलता है, उससे भी जाहिर होता है कि यह ग्राम पहले किसी समय एक कस्वा अथवा नगर की मर्यादा में था। इसके समर्थन में और भी अनेक प्रमाण यहाँ पर देखने को मिलते हैं। इस ग्राम का कोट यद्यपि इन दिनों में बहुत कुछ नष्ट हो गया है, परन्तु फिर भी वह इस ग्राम की प्राचीन विशालता का प्रमाण देता है। यहाँ पर खुदा हुआ कोई पत्थर हमको नहीं मिला। इस ग्राम के निवासी अपने काम के लिये निकटवर्ती एक तालाब से पानी लाते है। 21 नवम्बर-बीसलपुर से दस मील की दूरी पर पाँचकुल्ला अथवा बिचकुल्ला नामक एक ग्राम है। वहाँ पहुँच कर चुरी नामक नदी की दूसरी तरफ हम लोगों ने मुकाम किया। यहाँ की मिट्टी हमें बड़ी अच्छी मालूम हुई। वह बालू की तरह लाल रंग की है। नदी के किनारे के खेतों में जो अनाज पैदा होता है, उसमें गेहूँ और जौ की पैदावार अच्छी होती है। यहाँ की जमीन मे बबूल और नीम के एक-दो वृक्ष भी दिखायी पड़े। इस ग्राम में आजकल सौ घरो से अधिक की बस्ती नहीं है। लेकिन पहले यह ग्राम बहुत सम्पन्न अवस्था मे था। यहाँ के पुराने आदमी इस ग्राम की समृद्ध अवस्था की तारीफ करते हुए बहुत-सी बातों का वर्णन करते है। मैंने उनको ध्यानपूर्वक सुना। यहाँ पर मुझे शिलालेख का एक टुकड़ा मिला। उसमे सिर्फ सोनङ्ग का लड़का 1224 सम्वत्' लिखा है। लुटेरे पठानों ने आक्रमण करके इस ग्राम को सभी प्रकार नष्ट कर दिया है। भाटी सामन्त की जीविका के रूप मे यह ग्राम राज्य की तरफ से दिया गया है। नदी के किनारे से कुछ फासले पर जो कुए बने हुए हैं, अपने काम के लिये इस ग्राम के रहने वाले उन्हीं से जल लाते हैं। 22 नवम्बर-यहाँ से आठ मील की दूरी पर पीपल्या नगर बसा हुआ है। वालू से भरी हुई वहाँ की जमीन काली है। वहाँ के लोग उसे धामुनी कहते हैं। पीपल्या नगर मे लगभग डेढ सौ मकानों की आबादी है। यहाँ पर जो लोग रहते हैं, उनमे एक तिहाई लोग जैन सम्प्रदाय को मानने वाले है। इस इलाके में प्रमुख रूप से ओसवाल जाति के लोग व्यवसाय करते हैं। यहाँ पर दो सौ माहेश्वरी वैश्य भी रहते हैं और वे शैव धर्मावलम्बी हैं। यहाँ का व्यवसाय बहुत अच्छा है। पीपल्या नगर के बने हुए छींट के कपडे बहुत पसन्द किये जाते हैं और वह बड़ी मात्रा में तैयार भी होता है। इसका अनुमान केवल इसी बात से किया जा सकता है कि तीन सौ से अधिक व्यवसायी केवल यहाँ की छींट का ही व्यवसाय करते हैं। पीपल्या नगर का व्यवसाय छींट के कपड़े तक ही सीमित नहीं है। यहाँ पर और भी कई चीजो का व्यवसाय होता है। निमाज के सामन्त की मृत्यु का वर्णन पहले किया जा चुका है। यह पीपल्या नगर उसी के इलाके का एक हिस्सा है। निमाज के सामन्त के एक प्रतिष्ठित पूर्वज का एक स्मारक यहां बना हुआ था। आक्रमणकारी मराठो ने उसका एक बड़ा हिस्सा नष्ट कर दिया है। मारवाड़ के इतिहास को पढ़ने से मालूम होता है कि ईसा मसीह के बहुत पहले परमार वंश के राजा गन्धर्व सेन ने पीपल्या नगर को बसाया था। यहाँ पर लम्क्षी देवी का एक मन्दिर है। उसमें मुझे 406
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