- राज्य के सामन्तों ने राज सिंहासन पर बैठने के लिए युवराज रायसिंह से प्रार्थना की। युवराज केवल राज्य-भार स्वीकार करने के लिए तैयार हुआ। रावल मूलराज इसी मौके पर कैद कर लिया गया और राज्य का प्रबन्ध रायसिंह के नाम पर होने लगा। मूलराज सिंहासन से उतार दिया गया और उसको कैद करने के बाद तीन महीने चार दिन बीत गये। राज्य के सामन्तों में उससे कोई प्रसन्न न था। इसलिए किसी ने उसको कैद से छुड़ाने की चेष्टा न की। परन्तु एक स्त्री किसी प्रकार उसको कैद से छुड़ाना चाहती थी। यह स्त्री एक पड्यंत्रकारी की पत्नी थी और वह पड़यंत्रकारी रायसिंह का गुप्त सलाहकार था। उसने माहेचा वंश में जन्म लिया था। यह वंश राठौरो की एक शाखा है। उस वंश का प्रधान सामन्त जिञ्चियाली का अनूप सिंह है। उसकी पत्नी रावल मूलराज का छुटकारा चाहती थी। इसके लिए उसने अपनी सभी प्रकार की कोशिशें आरम्भ कर दी। अनूपसिंह इस राज्य का प्रधान सामन्त था और मन्त्री स्वरूप सिंह तथा रावल मूलराज के विरुद्ध जो पड़यंत्र चल रहा था, उसका वह प्रधान नायक था। उसकी पत्नी मूलराज की मुक्ति के लिए इतनी बड़ी कोशिश में थी कि अपने इस उद्देश्य की सफलता के लिए यदि उसको अपने पति अनूप सिंह के लिए भी अनुचित कदम उठाना पड़े तो भी उसको कुछ चिंता न थी। वह सोचती थी कि रायसिंह ने पिता को कैद करके अच्छा काम नहीं किया। इसलिए रायसिंह को भी सिंहासन पर बैठने का अधिकार नहीं मिलना चाहिये। अनूप सिंह राठौर की स्त्री रावल मूलराज को कैद से छुड़ाने के लिए क्यों इतनी विह्वल हो रही थी, इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। इसलिए उसका कारण उस स्त्री की राजभक्ति भी मानी जा सकती है। उस स्त्री ने जब कोई दूसरा उपाय मूलराज के छुटकारे का न पाया तो उसने अपने बेटे जोरावर सिंह को बुलाकर अपनी बात कही। जोरावर सिंह ने माता के आदेश को स्वीकार कर लिया। यह जानकर उस स्त्री को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने आवेश में आकर कहा- "बेटा, तुम्हें किसी प्रकार रावल मूलराज को कैद से छुड़ाना है और इस कार्य में यदि तुम्हारे पिता बाधक बने तो तुम उनकी भी परवाह न करना और अपने उद्देश्य की सफलता में तुम यदि किसी प्रकार का संकट देखना तो अपने पिता को भी मार डालना। यदि ऐसा हुआ तो तुम्हारे पिता के मृतक शरीर को लेकर मैं चिता में बैलूंगी और सती होकर स्वर्ग जाऊँगी।" जोरावर सिंह अपनी माता के मुख से इस प्रकार की बातों को सुनकर रावल मूलराज को कैद से छुड़ाने के लिए तैयार हो गया। इसके बाद उसकी माता ने अपने देवर अर्जुन सिंह और बारू के सामन्त मेघसिंह को बुलाकर परामर्श किया और सभी प्रकार उनको समझा- बुझाकर रावल मूलराज के छुटकारे के लिए उनसे प्रतिज्ञा करायी। मूलराज कारागार में बन्द था। उसको अपनी मुक्ति की कोई आशा न थी। रायसिंह के सम्बन्ध में उसकी धारणा बहुत दूपित हो चुकी थी। उसके छुटकारे के लिए जो कोशिश हो रही थी, उसका उसे कोई ज्ञान न था। जोरावर सिंह ने रावल मूलराज के छुटकारे के लिए अपनी माता से प्रतिज्ञा की थी। इसलिए उसने अपनी तैयारी आरम्भ की और अर्जुनसिंह तथा मेघसिंह ने उसका साथ दिया। ये लोग अपनी-अपनी सेनायें लेकर आ गये और एक साथ 46
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