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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१४७

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राणा मोकल में क्षत्रियोचित शौर्य का कोई अभाव न था। उसके जीवन का असमय अन्त हुआ। क्षेत्र सिंह का पहले उल्लेख किया जा चुका है। उससे एक दासी के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न हुए थे। उनमें एक का नाम था चच्चा और दूसरे का मैरा। दोनों ही राजमहलों मैं रहने वाली एक दासी के गर्भ से पैदा हुए थे इसलिये वे राज्य के अधिकारी न थे। चित्तौड़ के सरदार और सामन्त घृणा की दृष्टि से उनको देखते थे। चित्तौड़ के लोगों का यह व्यवहार देखकर वे दोनों भाई असंतुष्ट रहते थे और मोकल से ईर्ष्या रखते थे। राणा मोकल सब कुछ जानते और समझते हुए भी उन दोनों भाइयों के साथ कोई अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहता था। इसीलिये दरवार की तरफ से उन दोनों भाइयों को सेना में अच्छे स्थान दिये गये थे। जिस समय भदेरिया के लोगों ने चित्तौड़ राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया था तो उनको दमन करने के लिये राणा मोकल अपनी सेना लेकर वहाँ पर गया था। उस सेना में चच्चा और मैरा भी गये थे। इन दोनों भाइयों की भावनायें राणा मोकल के प्रति पहले ही कलुषित हो रही थीं। वे अपने आपको चित्तौड़ का राज्य पाने का अधिकारी समझते थे और इसकी बाधा में वे राणा मोकल को प्रमुख समझते थे। भदेरिया में पहुँचकर दोनों भाई आपस में कुछ परामर्श करते रहे और एक दिन अवसर पाकर उन दोनों ने पीछे से मौका पाकर मोकल को जान से मार डाला। राणा मोकल का बड़ा बेटा कुम्भा चित्तौड़ में था । उसने जब यह समाचार सुना तो उसे बहुत दुःख हुआ। उसने समझ लिया कि चंच्चा और मैरा मादेरिया से लौटकर चित्तौड़ पर आक्रमण करेंगे। इसलिये उसने मारवाड़ के राजा से सहायता मांगी और वहाँ के राजा ने अपने लड़के के सेनापतित्व में चित्तौड़ की सहायता के लिये मारवाड़ की सेना भेजी। चच्चा और मैरा उस समय चित्तौड़ के पास एक दुर्ग में आ गये थे। मारवाड़ की सेना के पहुँचते ही वे दोनों उस दुर्ग से भाग कर अरावली पर्वत के पाई नामक स्थान पर चले गये और कुछ दिनों के बाद वहाँ पर वे दोनों राठौड़ो और सिसोदिया राजपूतों के द्वारा मारे गये। 147