पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१७१

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. के साथ भीषण झगड़ों में पड़ा हुआ था, हुमायूँ काश्मीर में आ गया था। उस समय उसने दिल्ली के आपसी झगड़ों को देखकर अपनी सेनाओं का संगठन किया और एक सेना लेकर उसने सिंध नदी को पार किया और सिकन्दर से युद्ध करने के लिए पहुँच गया । उस समय अकबर की अवस्था बारह वर्ष थी। पठान बादशाह की फौज से युद्ध करने के लिए हुमायूँ ने अपनी सेना देकर अकबर को रवाना किया। सरहिन्द नामक स्थान पर दोनों तरफ की फौजों का सामना हुआ और भयानक संग्राम आरम्भ हो गया। उस लड़ाई में दोनों तरफ से बहुत-से आदमी मारे गये । अंत में अकवर की विजय हुई। हुमायूँ ने इस विजय के बाद अपनी फौज लेकर दिल्ली के सिंहासन पर अधिकार कर लिया। इसके कुछ दिनों के बाद हुमायूँ के जीवन में एक दुर्घटना घटी। किसी समय वह अपने पुस्तकालय की सीढ़ियों पर से गुजर रहा था, अचानक वह गिर गया और उसकी मृत्यु हो गयी। हुमायूँ के मर जाने के बाद सन् 1555 ईसवी में अकबर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसके थोड़े ही दिनों बाद उसके शत्रुओं ने आक्रमण किया और दिल्ली तथा आगरा को शत्रुओं ने अपने अधिकार में कर लिया। इस दशा में अकबर पंजाब के किसी स्थान पर चला गया। इस अवसर पर बैरामखाँ ने उसकी बड़ी सहायता की। उसकी बुद्धिमता और बहादुरी से अकबर ने अपने खोये हुये अधिकार को प्राप्त किया और इस सिंहासन पर बैठने के पश्चात् थोड़े ही दिनों में कालपी, चन्देरी, कालिन्जर, समस्त बुन्देलखण्ड और मालवा पर अकबर ने अधिकार कर लिया। इस समय उसकी अवस्था अठारह वर्ष की थी। अकबर ने थोड़े ही दिनों के बाद राजपूतों के साथ युद्ध करने का निर्णय किया और सब से पहले वह अपनी सेना लेकर मारवाड़ की तरफ रवाना हुआ। बादशाह हुमायूँ ने अपने दुर्भाग्य के दिनों में अन्यान्य के साथ-साथ जोधपुर के राजा मालदेव से भी आश्रय देने की प्रार्थना की थी। कुछ उन्हीं दिनों की शत्रुता का बदला लेने के लिए हुमायूँ का लड़का अकबर दिल्ली से रवाना हुआ। मारवाड़ में मेड़ता नामक नगर उन दिनों में अधिक सम्पत्तिशाली था और धन-सम्पति के नाम पर मारवाड़ राज्य में उसकी दूसरी संख्या थी। अकबर ने वहाँ पहुँचकर उस नगर को विध्वंस किया। वहाँ के होने वाले विनाश को देखकर आमेर का राजा भारमल (बिहारीमल) घबरा उठा और अपने लड़के भगवानदास को लेकर उसने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली और मुगल सम्राट को प्रसन्न करने के लिये उसने अपनी लड़की का विवाह अकबर के साथ कर दिया। इसके बाद अकबर राजस्थान के दूसरे राज्यों पर आक्रमण करने वाला था। परन्तु इसी अवसर पर उसके उजबक सरदारों ने विद्रोह किया। इसीलिए उसने विद्रोही सरदारों का दमन करने की चेष्टा की और जब उसे उसमें सफलता मिल गयी तो अपनी विशाल सेना लेकर उसने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। जिस अवस्था में अकबर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था, ठीक उस अवस्था में उसका पितामह बावर अपने पूर्वजों के फरगना राज्य का अधिकारी हुआ था। उसके पहले बाबर ने भयंकर संघर्षों का सामना किया था और यही अवस्था अकबर के सिंहासन पर बैठने के पहले रही। दोनों ने अपने जीवन की शिक्षा कठोर विपदाओं के द्वारा पायी थी। जीवन के उन संघर्षों ने दोनों को शक्तिशाली और महान बना दिया। प्रकृति का यह सत्य विश्व के समस्त महान पुरुषों में देखने को मिलता है। प्रकृति के इस सत्य के द्वारा जिसके जीवन का निर्माण नहीं होता, वह निर्बल, अयोग्य और कायर रहा करता है । इस सत्य का 171