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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१७३

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- आकर रुकी थी, वहाँ पर संगमरमर का एक स्तम्भ बना हुआ है। यह 'अकबर का डेरा के नाम से प्रसिद्ध है। भट्ट ग्रन्थों के अनुसार, आक्रमण के लिए आयी हुई मुगल बादशाह की फौज का समाचार सुनकर राणा उदयसिंह चित्तौड़ से भाग गया। लेकिन चित्तौड़ के सरदार इससे भयभीत न हुए और अकवर का मुकाबला करने के लिए उन लोगों ने चित्तौड़ में युद्ध की तैयारी आरम्भ कर दी । मेवाड़ राज्य के सभी सामन्त और राजा अपनी सेनायें लेकर चित्तौड़ की तरफ रवाना हो गये। शूरवीर सहीदास चूंडावत वंश की सेना को लेकर पहुँच गया और वहाँ के सर्पद्वार पर उसने अपनी सेना लगा दी। मरेरिया के राजा दूदा की सेना भी चित्तौड़ की रक्षा के लिए आ गयी । वैदला और कटोरिया नामक नगरों के सामन्त भी अपने सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचे। विजोली के परमारों और सादड़ी के झाला नरेश की सेनायें भी युद्ध के लिए आ गयीं। इनके साथ-साथ मेवाड़-राज्य के अन्य सरदार और सामन्त भी युद्ध करने के लिए चित्तौड़ में आ गये। इनके अतिरिक्त और भी जो सामन्त अपनी सेनाओं के साथ आये, उनमें देवल के राजा बाघ जी के वंशज जालौर नरेश सोनगरे का रावु, ईश्वरदास राठौड़, करमचन्द कछवाहा और ग्वालियर के तोमर राजा के नाम प्रमुख हैं। इन सब राजाओं और सामन्तों ने अपनी सेनाओं के साथ चित्तौड़ आकर अकबर की फौज के साथ युद्ध करने की तैयारी की। अकबर बादशाह की फौज ने जहाँ पर छावनी बनायी भी वहाँ से उसकी सेना चित्तौड़ की तरफ आगे बढ़ी और वह सिंह द्वार पर पहुँच गयी। राजपूतों की सेना ने उसी समय आगे बढ़कर उसका मुकाबला किया। दोनों ओर से तेजी के साथ मारकाट आरम्भ हो गयी। चूण्डावत वीर सरदार सहीदास ने मुगल सेना पर बाणों की वर्षा आरम्भ की। थोड़ी देर के युद्ध के वाद मुगल सेना चित्तौड़ में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़ने लगी। उस समय मुगलों की वन्दूकों की गोलियों से बहुत से राजपूत मारे गये। इसी समय सहीदास के सैनिकों का भयानक रूप से संहार हुआ। परन्तु सहीदास अपनी पूरी शक्ति के साथ मुगलों से युद्ध करता रहा । उसकी इस बहादुरी से राजपूतों में उत्साह की वृद्धि हुई और चित्तौड़ की रक्षा करने वाले सभी राजपूत सरदारों ने मुगल सेना के साथ भयानक की। इन वीर सरदारों में सरदार जयमल और पत्ता के पराक्रम को देखकर एक वार मुगल सेना भयभीत हो उठी। जयमल बदनौर का राजा था। मारवाड़ के शूरवीर सामन्तों में उसका नाम बहुत प्रसिद्ध था। उसका जन्म राठौड़ वंश की मेड़तिया शाखा में हुआ था। पत्ता कैलवाड़ा का राजा था। वह चूंडावत वंश की शाखा में पैदा हुआ था। उसका गोत्र जगवत था। उस युद्ध में जयमल और पत्ता ने अपनी भयानक मारकाट के द्वारा जिस प्रकार शत्रुओं का संहार किया, उसकी प्रशंसा अकबर बादशाह ने स्वयं की और इन दोनों वीरों की प्रशंसा में आज तक राजस्थान में गाने गाये जाते हैं। मेवाड़ के इतिहास में यह भयंकर संग्राम था । इस युद्ध में राजपूतों के साथ-साथ, चित्तौड़ के अन्तःपुर से निकलकर राजपूत वीरांगनाओं ने भी आक्रमणकारी मुगलों के साथ युद्ध किया था और अपने प्राणों की आहुतियाँ दी थीं ।चित्तौड़ का यह संग्राम क्रमशः भयानक होता गया। सलुम्वर का राजा शूरवीर धुंडावत सहीदास युद्ध करता हुआ मारा गया। उसके गिरते ही पत्ता ने आगे बढ़कर मुगलों की फौज को रोका और प्राणों का भय छोड़कर उसने शत्रुओं पर आक्रमण किया। उस समय पत्ता की अवस्था सोलह वर्ष की थी। चित्तौड़ के पहले युद्ध में उसका पिता मारा गया था। पत्ता की अवस्था छोटी होने के कारण 173