पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१८१

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शत्रु सेना के भीतर पहुँच गया और वह मानसिंह को खोजने लगा। इसी समय हाथी पर बैठा हुआ अकबर का लड़का सलीम सामने दिखाई पड़ा। उसने अपने चेतक घोड़े को आगे बढ़ाया और सलीम के ऊपर उसने जोरदार वार किया। उसकी तलवार से सलीम के कई अंगरक्षक मारे गये। प्रताप के वार का जवाब देते हुए सलीम ने भी राणा पर वार किया। प्रताप ने उससे बचकर फिर अपने घोड़े को बढ़ाया और सलीम पर जोरदार भाले का आघात किया। उस भाले से सलीम का लोहे की मोटी चद्दर से मढ़ा हुआ हौदा टकराया। शहजादा सलीम बच गया और पूरा आघात उसके हौदे को पहुंचा। उसी समय सलीम का महावत प्रताप की तलवार से मारा गया। उसके गिरते ही सलीम का हाथी पीछे की तरफ हटने लगा। यह देखकर प्रताप सलीम की तरफ आगे बढ़ा और उसके हाथी को घेर कर प्रताप ने सलीम को मारने की चेष्टा की। इस समय युद्ध अत्यन्त भयानक हो उठा था। सलीम पर प्रताप का आक्रमण देखकर मुगल सेना आगे बढ़ी और उसके बहुत से सैनिक और सरदारों ने प्रताप पर आक्रमण किया। राणा प्रताप ने भी अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग किया। उसकी शक्तिशाली तलवार से इस समय बहुत से शत्रु सैनिक मारे गये। लेकिन मुगल सेना ने राणा प्रताप को घेर लिया। युद्ध में राजपूत अधिक मारे गये। प्रताप की सेना कमजोर पड़ने लगी। राणा शत्रुओं के बीच में घिरा हुआ था और मुगलों ने जोरदार हमला उस पर किया था। प्रताप के मस्तक पर मेवाड़ का मुकुट लगा था। उसी मुकुट को निशाना बनाकर शत्रु प्रताप पर मार कर रहे थे। राणा के आस-पास राजपूतों की संख्या बहुत कम हो गयी थी। इस बात को समझते हुए भी राणा ने निर्भीकता से काम लिया और अपनी तलवार से उसने लगातार शत्रुओं का संहार किया। परन्तु युद्ध की परिस्थिति बिगड़ती जा रही थी और कुछ देर के बाद शत्रु की विशाल सेना ने राणा प्रताप को चारों ओर से घेर लिया। उस समय राजपूत सरदार और सैनिक दूर पड़ गये थे। उन सब ने प्रताप को शत्रुओं के बीच में घिरा हुआ देखा । मुगलों की सेना भयंकर मार-काट करती हुई आगे बढ़ रही थी। राजपूतों ने प्राणों का भय छोड़कर शत्रुओं पर मार की। उस समय बहुत से मुगल मारे गये। लेकिन राणा प्रताप शत्रुओं के बीच घिरता जा रहा था और मुगलों के जोर के कारण राजपूत प्रताप की तरफ बढ़ न पाते थे। इस समय प्रताप बिलकुल शत्रुओं के बीच में था। उसके शरीर में बहुत-से जख्म हो गये थे और उनसे लगातार खून बह रहा था। रक्त से उसके कपड़े बिलकुल भीग गये थे। प्रताप ने अपनी इस परिस्थिति को अनुभव किया। उसको कुछ सोचने का मौका न था । उसी समय एक स्वर उसे सुनायी पड़ा- “राणा प्रताप की जय !” इसके बाद तुरन्तु झाला का शूरवीर सामन्त मन्नाजी तेजी के साथ बढ़ता हुआ प्रताप के समीप पहुँच गया और बड़ी सावधानी के साथ राणा प्रताप के सिर पर रखे हुए राजमुकुट को उतार कर उसने अपने सिर पर रख लिया और तेजी के साथ वह प्रताप के आगे पहुंच गया। शत्रु इस रहस्य को समझ न सके । राजमुकुट पहने हुए मन्ना जी को प्रताप समझ कर वे लोग उसको मारने की चेष्टा में लगे रहे। मन्ना जी अपनी सेना के साथ शत्रुओं के सामने पहुँचकर भीषण मार-काट करने लगा। इस समय मन्ना जी के आगे आते ही प्रताप पीछे हट गया और बाहर निकल कर क्षणभर उसने होते हुए युद्ध की तरफ देखा। उसके देखते-देखते शत्रुओं के बीच में मन्ना जी घिर गया और वह मारा गया। अपने नेत्रों से राणा प्रताप ने यह देखा और उसके बाद वह अपने घोड़े पर बैठा हुआ पर्वत की तरफ आगे बढ़ा। कुछ दूर निकल जाने के बाद प्रताप ने देखा कि उसका पीछे करते हुए दो मुगल सैनिक तेजी के साथ आ रहे हैं। इनमें एक 181