राणा डाला, बल्कि उसने मेरे घोड़े को भी खत्म कर दिया। इस दशा में मुझे खुरासानी सैनिक के घोड़े पर बैठकर यहाँ आना पड़ा। सलीम ने प्रतिज्ञा करते हुए कहा कि अगर तुम सही-सही बात कह दोगे तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूंगा । सलीम की इस बात पर शक्तिसिंह ने उत्तर दिया "मेवाड़-राज्य का उत्तरदायित्व मेरे भाई के कंधों पर है। इस संकट के समय उसकी बिना सहायता किये हुए मैं कैसे रह सकता।” सलीम ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया और शक्तिसिंह को चले जाने की उसने आज्ञा दी ।। उदयपुर पहुँचकर शक्तिसिंह ने अपने भाई प्रतापसिंह से भेंट की। उदयपुर पहुंचने के पहले रास्ते में शक्तिसिंह ने भिनसोर नामक दुर्ग पर आक्रमण किया और उसको अपने अधिकार में ले लिया था। उदयपुर पहुँचकर उस दुर्ग को भेंट में देते हुए शक्तिसिंह ने राणा का अभिवादन किया। प्रतापसिंह ने प्रसन्न होकर दुर्ग शक्तिसिंह को पुरस्कार में दे दिया। यह दुर्ग बहुत दिनों तक शक्तिसिंह के वंश वालों के अधिकार में रहा। हल्दीघाटी के इस युद्ध में राणा प्रताप के बाईस हजार राजपूतों में चौदह हजार राजपूत मारे गये और आठ हजार राजपूत बचकर उदयपुर वापस आये। इस युद्ध में प्रताप के अत्यन्त निकटवर्ती पाँच सौ कुटुम्बी और सम्बन्धी, ग्वालियर का भूतपूर्व राजा रामशाह और साढ़े तीन सौ तोमर वीरों के साथ रामशाह का बेटा खाण्डेराव मारा गया। राणा प्रतापसिंह के प्राणों की रक्षा करके झाला के वीर सामन्त मन्ना जी ने अपने प्राणों की आहुति दी। इन महान बलिदानों के बाद भी मुगल सेना के बहुत बड़ी होने के कारण राणा प्रतापसिंह की पराजय हुई। इन दिनों में उदयपुर को राणा प्रताप ने रहने का स्थान बनाया। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद शत्रुओं के आक्रमण करने पर राणा प्रताप ने कमलमीर में पहुँच कर छावनी बनायी । मुगल सेना के सेनापति को व शाहबाजखाँ ने उसके बाद कमलमीर के पहाड़ी स्थान को घेर लिया। उस समय राणा प्रताप ने कुछ दिनों तक उसका मुकाबला किया। इन्हीं दिनों में देवराज नाम के एक राजपूत ने प्रताप के साथ विश्वासघात किया। कमलमीर में नागन नाम का एक बड़ा कुआ था। कमलमीर के लोग उसी कुए का पानी पीते थे। यह रहस्य देवराज से शत्रुओं को मालूम हुआ। उस कुए का पानी किसी प्रकार विषाक्त बना दिया गया । इस दशा में राणा के सामने पानी का भयंकर संकट पैदा हो गया। इसलिए वह अपने परिवार और सैनिकों के साथ कमलमीर से चावण्ड नामक पहाड़ी दुर्ग पर चला गया। कमलमीर पर आक्रमण करने पर राजा मानसिंह ने घरमेती और गोगुन्दा नामक दोनों पहाड़ी दुर्गों पर अधिकार कर लिया। इसी अवसर पर सागर जी के बेटे मोहब्बत खाँ ने उदयपुर पर अधिकार किया। अमीशाह नाम के एक मुगल शहजादे ने चावण्ड और अगुणपानोर के बीच पहुँच कर भीलों के साथ ऐसा उत्पात किया, जिससे उनके साथ राणा प्रताप के जो सम्बन्ध थे, वे छिन्न-भिन्न हो गये । फरीद खाँ नाम के एक मुगल सेनापति ने चप्पन को घेर लिया और चावण्ड के दुर्ग तक जहाँ राणा प्रताप और उसके राजपूत पहुँच गये थे - आतंक पैदा कर दिया। राणा के रहने का स्थान चावण्ड शत्रुओं से घिर गया। मेवाड़ के जितने पहाड़ी स्थान और दुर्ग थे, सब के सब बादशाह की फौज के आतंक में आ गये। शत्रु के सैनिक बड़ी संख्या में प्रताप की खोज में रहुने लगे। राणा अपने परिवार और राजपूतों के साथ पर्वत के घने जंगलों में छिपा रहता और मौका पाते ही वह शत्रुओं पर आक्रमण कर देता। 1. यह घटना उचित ऐतिहासिक स्रोतों के अभाव में पूर्णत: प्रामाणिक नहीं मानी जाती है तथा भाटों द्वारा गढ़ी हुई लगती है। 183
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