morte राणा अमरसिंह की सेना में इस बात का झगड़ा उठा कि हारावल का अधिकारी कौन है। इस हरावल को चूंडावत सरदार अपने लिए चाहता था और शक्तावत सरदार अपने लिए चाहता था। इस बात को लेकर दोनों राजपूत सरदारों में झगड़ा होने लगा। हरावल का अभिप्राय सेना के आगे का भाग है। सरदारों में जो सब से श्रेष्ठ होता था उसी को हरावल का अधिकारी माना जाता था। यह अधिकार सेना में श्रेष्ठता का परिचय देता था। इस विवाद का तथा उसके परिणाम स्वरूप चूंडावतों और शक्तावतो के प्रमुख सरदारारें के मारे जाने की घटना का विस्तृत वर्णन अध्याय-8 मे दिया जा चुका यहाँ पर शक्तावत लोगों के सम्बन्ध में कुछ प्रकाश डालना आवश्यक मालूम होता है। राणा उदयसिंह के पच्चीस लड़के थे, उनमें शक्तिसिंह दूसरा था। वह बचपन से ही तेजस्वी और निर्भीक था। उसकी छोटी अवस्था में ज्योतिपियों ने राणा उदयसिंह से कहा था कि तुम्हारा यह लड़का मेवाड़ के लिए कलंक होगा। शक्तिसिंह उस समय से राणा को खटकने लगा था। एक समय राणा ने उसको मार डालने का प्रयत्न किया था। परन्तु उस समय सलुम्बर सरदार ने राणा से शक्तिसिंह की रक्षा की थी। एक समय शिकार खेलते हुए प्रतापसिंह और शक्तिसिंह में झगड़ा हो गया और उसके कारण जंगल में दोनों भाई एक दूसरे के प्राणघातक हो गये। उस समय मेवाड़ राज्य के एक वृद्ध मन्त्री ने उन दोनों को रोकने की कोशिश की। लेकिन जब उसे सफलता न मिली तो वृद्ध मन्त्री ने तलवार मार कर वहीं पर अपने प्राण दे दिए । मन्त्री की इस प्रकार मृत्यु से झगड़ा तो रुक गया, परन्तु प्रतापसिंह ने मेवाड़ राज्य छोड़कर चले जाने के लिए शक्तिसिंह को आदेश दिया शक्तिसिंह उसी समय मेवाड़ राज्य से निकलकर चला गया और दिल्ली के मुगलों से मिलकर वह वादशाह अकबर के यहाँ रहने लगा। प्रतापसिंह ने उस मन्त्री का अंतिम संस्कार किया और उसके लड़के को जीवन-निर्वाह के लिए एक जागीर दे दी। शक्तिसिंह अकबर के यहाँ जाकर रहने लगा और हल्दीघाटी के युद्ध में अंतिम समय उसने खुरासानी तथा मुलतानी सैनिकों से अपने भाई प्रतापसिंह की रक्षा की। उसके बाद दोनों फिर स्नेहपूर्वक रहने लगे। शक्तिसिंह के सत्रह पुत्र हुए। उनमें परस्पर स्नेह और वन्धुत्व का भाव न था। शक्तिसिंह अपने परिवार के साथ भिनसोर के दुर्ग में हा करता था। वहाँ पर उसके लड़कों में झगड़ा पैदा हुआ और उस झगड़े के कारण एक भाई अचलसिंह अपने छोटे पन्द्रह भाइयों के साथ वहाँ से ईडर राज्य की तरफ चला गया। उन दिनों में ईडर राज्य राठौड़ों के अधिकार में था। उस राज्य में पहुँचने के पहले ही रास्ते में अचलसिंह की गर्भवती स्त्री से एक बालक पैदा हुआ। उसका नाम आशा रखा गया। इसके पश्चात् अचलसिंह सव को लेकर ईडर राज्य पहुँचा। वहाँ के राजा ने बड़े सम्मान के साथ उसको अपने यहाँ स्थान दिया। शक्तिसिंह के लड़कों ने शक्तावत गोत्र की प्रतिष्ठा की। जिस समय अमरसिंह ने बादशाह जहाँगीर से लड़ने के लिए सेना का संगठन करना शुरू किया था, उस समय शक्तिसिंह के लड़के ईडर से बुला लिए गये और वे उदयपुर में आकर रहने लगे। इन्हीं शक्तावत लोगों के साथ चुंडावत सरदार का विवाद पैदा हुआ था और उस विवाद के फलस्वरूप अन्तला दुर्ग पर जो मुसलमानों के अधिकार में था, विजय हुई। जो शक्तावत लोग अन्तला दुर्ग पर अधिकार करने गये थे, शक्तिसिंह का लड़का वल्ल उनका सरदार था और उसने दुर्ग को प्राप्त करने के लिए अपने प्राण दे दिये। शक्तावत वंश 236
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