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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२५२

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दिया। ये तीनों सेनायें एक दूसरे से दूर होकर युद्ध के लिए तैयार हुईं। राजसिंह के बड़े पुत्र जयसिंह ने अपनी सेना को अरावली के ऊपर रखा। राजकुमार भीमसिंह ने पश्चिम की तरफ से लड़ने के लिए अपना मोर्चा कायम किया और राणा राजसिंह अपनी सेना के साथ एक पहाड़ी स्थान के बीच में पहुँचकर शत्रुओं का रास्ता देखने लुगा । इस प्रकार राणा की तीन सेनायें शत्रुओं से युद्ध के लिए तीन अलग-अलग स्थानों पर तैयार हो गयी। बादशाह औरंगजेब देवारी नामक स्थान पर अपनी सेना के साथ उस समय मौजूद था। उसने अपने लड़के अकबर को पचास हजार मुगल सैनिक देकर आक्रमण करने के लिए उदयपुर की तरफ भेजा। शाहजादा अकबर की मुगल सेना रास्ते के ग्रामों को उजाड़ती हुई उदयपुर की तरफ बढ़ी। रास्ते में लगभग सभी स्थान प्रजा से खाली उसको मिले । उन स्थानों पर रहने वाले होने वाले विनाश से घबराकर पहाड़ पर चले गये थे। यह बात अकबर को मालूम थी। शाहजादा अकबर की मुगल सेना का मुकाबला करने के लिए राजकुमार जयसिंह अपनी सेना के साथ रवाना हुआ और जहाँ पर अकबर ने अपनी फौज का मुकाम किया था, बड़ी तेजी के साथ पहुँचकर जयसिंह ने आक्रमण किया, उस समय मुगलों में कुछ नमाज पढ़ रहे थे और कुछ लोग शतरंज खेल रहे थे। उस समय राजपूतों ने भयानक रूप से मुगलों का संहार किया। उस भीषण अवस्था में मुगल सैनिक भागने की कोशिश करने लगे। लेकिन वह स्थान चारों तरफ से घिरा हुआ था। इसलिए उनको भागने का रास्ता न मिला। उस समय औरंगजेब अपनी फौज के साथ देवारी नामक स्थान में था। अकबर नै वहाँ जाकर दूसरी फौज अपनी सहायता के लिए लाने की कोशिश की । परन्तु जयसिंह ने उसका रास्ता रोक कर घेर लिया, जिससे अकबर भयानक संकट में पड़ गया। अकबर को भागने का जब कोई और रास्ता न मिला तो उसने गोगुण्दा के रास्ते से मारवाड़-राज्य के खेतों में गुजरते हुए निकल जाने का इरादा किया था। लेकिन इसमें भी उसको सफलता नहीं मिली। सामन्त लोग अपनी सेनाओं के साथ अकबर के निकलने का थे। पीछे की तरफ जयसिंह और उसकी सेना थी। अकबर चारों तरफ से घिरा हुआ था। अपने निकलने का कोई रास्ता उसे दिखायी न पड़ा। इस दशा में उसको कई दिन बीत गये। निराश होकर उसने जयसिंह से प्रार्थना की और वादा किया कि आज के बाद सारी लड़ाईयाँ खत्म हो जाएंगी। इसके बाद जयसिंह ने उसके प्राणों की रक्षा की। अकबर वहाँ से निकलकर चला गया। जिस पहाड़ी स्थान पर युद्ध करने के लिए दोनों तरफ की सेनायें एकत्रित हुई थी वह अत्यंत भयानक था। अकबर और दिलेर खाँ के पराजित होने के बाद राणा राजसिंह ने बादशाह औरंगजेब पर आक्रमण किया। दोनों तरफ से भीषण युद्ध आरम्भ हुआ । राजपूतों ने उस समय बड़ी बहादुरी से काम लिया। जिस राठौर वंश का नाश करने की औरंगजेब ने चेष्टा की थी, इस युद्ध में उसी राठौड़ वंश के राजपूत सैनिक उसके लिए प्राण घातक साबित हुये। युद्ध में आये हुये राठौड़ सैनिकों को जसवंतसिंह की मृत्यु याद थी। उसका बदला लेने के लिये राठौड़ सैनिक इस समय भयानक रूप से औरंगजेब की फौज के साथ मारकाट कर रहे थे। औरंगजेब एकाएक संकट में पड़ गया। यह देखकर मुगल सेना आगे बढ़ी प्रसिद्ध लेखक अर्म ने लिखा है कि औरंगजेब स्वयं अपने इस आक्रमण के समय राजपूतों के बीच फंस गया था और बड़ी मुश्किल से उसको छुटकारा मिला था। जिस पहाड़ी स्थान पर युद्ध करे के लिए वह रास्ता घेरे 1. 252