। बहुत निडर हो गया था और पिता की मौजूदगी में वह सिंहासन का अधिकार अपने हाथों में ले लेना चाहता था। राज्य के खजाने पर अपना अधिकार करने के लिए अपनी सेना के साथ वह कमलमीर की तरफ चला। कमलमीर दिप्रा नाम के सरदार के हाथ में था। वह समझदार, शूरवीर और दूरदर्शी था। उसने अमरसिंह की विशाल सेना की परवाह न की और उसने अमरसिंह को किसी प्रकार सफल न होने दिया। इस प्रकार के कुछ और भी कारणों से अमरसिंह की शक्तियाँ क्षीण पड़ने लगीं। उनसे विवश होकर अमरसिंह ने अपने पिता के साथ सन्धि कर ली। राणा जयसिंह ने बीस वर्ष तक राज्य किया। उसके मरने पर उसका बड़ा लड़का अमरसिंह सम्वत् 1756 सन् 1700 ईसवी में सिंहासन पर बैठा। पिता के जीवन काल में वह अपने व्यवहारों के कारण अनेक प्रकार की हानियाँ उठा चुका था। जिनसे वह अपनी शक्तियों का संचय न कर सका। फिर भी वह समझदार और दूरदर्शी था। उन दिनों में मुगल राज्य में आपसी झगड़े बढ़ गये थे। उनको देखकर अमरसिंह ने मुगल राज्य के अधिकारी शाहआलम के साथ सन्धि कर ली। बादशाह बाबर ने भारतवर्ष में मुगलों के राज्य की प्रतिष्ठा की थी और अकबर ने उसको विस्तार देकर लगभग सम्पूर्ण भारत में अपना साम्राज्य कायम कर लिया था। जिस नीति से अकबर को अपने राज्य को बढ़ाने में सफलता मिली थी, औरंगजेब ने जीवन-भर बिल्कुल उसके प्रतिकूल काम किया। वह स्वाभाविक रूप से हिन्दुओं का और हिन्दू धर्म का विरोधी था। अपने इस स्वभाव के कारण ही वह उन हिन्दू राजाओं के साथ भी अच्छा व्यवहार न कर सका, जो अकबर के समय से मुगल साम्राज्य के समर्थक बने थे। वह मुस्लिम धर्म का प्रबल पक्षपाती था। अपने कठोर शासन के द्वारा उसने हिन्दुओं को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया था। बादशाह अकबर के समय मुगल साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक मामलों में बराबर के अधिकार थे। जहाँगीर और शाहजहाँ के समय तक हिन्दुओं के इस प्रकार के अधिकार बराबर कायम रहे । औरंगजेब ने हिन्दुओं के इन अधिकारों को नष्ट कर दिया था। उसने उन लोगों पर जजिया (टैक्स) कर की तरह के कठोर कर लगाये थे, जिन लोगों ने इस्लाम धर्म को स्वीकार नहीं किया था। उसके समय में इस्लाम धर्म की धूम थी। जो हिन्दू अपनी किसी भी दशा में इस्लाम को मंजूर कर लेता था, वह बादशाह औरंगजेब की हमदर्दी को प्राप्त करने का सहज ही अधिकारी बन जाता था। औरंगजेब का समस्त शासन इस प्रकार के पक्षपात से सदा डूबा रहा। मुगल साम्राज्य के पतन की शुरुआत यहीं से हुई और इसी पक्षपात ने उस विशाल साम्राज्य को सब प्रकार से कमजोर बना दिया। सीसोदिया वंश की एक छोटी शाखा में रावगोपाल नामक एक राजपूत पैदा हुआ था। वह चम्बल नदी के किनारे पर बसे हुए रामपुर के इलाके का एक सामन्त राजा था। वह अपनी सेना के साथ दक्षिण की लड़ाई में गया था और जाने के समय उसने रामपुर का शासन अपने लड़के को सौंप दिया था। उसके लड़के ने उसके साथ विद्रोह किया। इस अवस्था में रावगोपाल ने अपने लड़के के विरुद्ध मुगल बादशाह के यहाँ मुकदमा दायर किया। रावगोपाल का लड़का अपराधी था। उस अपराध से बचने के लिए उसके सामने इस सन्धि में राणा अमरसिंह ने जो शर्ते पेश की थीं और वे मंजूर हुई थीं, उनका महत्वपूर्ण अंश संक्षेप में इस प्रकार है: (1) चित्तौड़ की प्रतिष्ठा का अधिकार राणा को होगा। (2) गो हत्या न की जाये। (3) शाहजहाँ के समय में जो जिले मेवाड़ राज्य में शामिल थे, वे राणा के अधिकार में रहेंगे । (4) धार्मिक बातों में हिन्दुओं को पूरी स्वतन्त्रता रहेगी। 1. 259
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