हुई । उसने निजाम के विरुद्ध नादिरशाह को भड़काया और कहा कि दिल्ली के खजाने में अपरिमित सम्पत्ति है। निजाम जिस रकम को देने का वादा करके संधि करना चाहता है, इतनी सम्पति तो वह स्वयं अपने पास से दे सकता है। सआदतखाँ की इस वात से नादिरशाह का लोभ बढ़ गया। निजाम के द्वारा जो संधि होने जा रही थी, वह टूट गयी । नादिरशाह ने दिल्ली के खजाने की कुंजी मांगी। इसके बाद नादिरशाह के सैनिक खुशी मनाते हुए वादशाह मोहम्मद शाह को पराधीन अवस्था में अपने कैम्पों के सामने से लेकर गुजरे। विजयी नादिरशाह 8 मार्च सन् 1740 ईसवी में दिल्ली के सिंहासन पर बैठा और उसने अपना सिक्का चलाया। उस सिक्के में लिखा गया : संसार के बादशाहों का बादशाह, युग का शहशाह बादशाह नादिरशाह । मुगलों के खजाने में जो बहुत दिनों की एकत्रित सम्पत्ति थी, वह आपसी झगड़ों में और उसके सम्बन्ध में अनेक मौकों पर राजाओं तथा सामन्तों को प्रसन्न करने के लिए इनामों के देने में निर्दयता के साथ खर्च की गयी थी। फिर भी, नकदी रुपयों के साथ सोना और जवाहरात मिलाकर चालीस करोड़ रुपये मुगलों के खजाने से नादिरशाह के अधिकार में आ गये । इनके सिवा राज्य की बहुत-सी कीमती चीजें और बहुमूल्य साजो-सामान उसके हाथ लगा। लेकिन इस अपरिमित सम्पत्ति ने नादिरशाह की भूख को मिटाने और उसको तृप्त करने के बजाय उसके क्रोध को भड़का दिया। उसने दो करोड़ पचास लाख रुपये की और माँग की और इसके लिए मुगल-राज्य में सर्वनाश आरम्भ कर दिया। राज्य के नेक और भले आदमियों को अपनी रक्षा का कोई मार्ग दिखाई न पड़ा और उन लोगों ने अपनी और परिवार की इज्जत बचाने के लिए आत्म-हत्या करके उस सर्वनाश से छुटकारा पाया । इसी मौके पर नादिरशाह को मालूम हुआ कि उसके साथ के कुछ ईरानी आदमी मारे गये हैं, वह भयानक रूप से उत्तेजित हो उठा। एक बड़ी मस्जिद पर चढ़कर उसने अपनी फौज के सिपाहियों को कत्ले-आम का हुक्म दिया। उसके फलस्वरूप, लाखों मनुष्य काट-काट कर फेंक दिये गये । इस नरसंहार के साथ-साथ नादिरशाह की फौज ने भयानक रूप से शहर को लूटा । गलियों और आम रास्तों में बरसाती पानी की तरह खून बहने लगा। पूरे शहर में आग लगा दी गयी। मकानों की जलती हुई होली में वेशुमार स्त्रियाँ, बच्चे और बूढ़े जलकर खाक हो गये। इस भयानक नर-संहार के समय अगर कोई वात जरा भी संतोष की हो सकती थी तो यही थी कि जब नादिरशाह ने मुगल बादशाह के मंत्री सआदतखाँ को जो इस सर्वनाश का कारण बना, उस सम्पत्ति की फेहरिस्त के पेश करने की आज्ञा दी, जो उसके और उसके बादशाह के अधिकार में थी और निजाम ने जो ढाई करोड़ रुपये उसको देने का निर्णय किया था, वह रकम भी अपने पास से दाखिल करने के लिये नादिरशाह ने सआदतखाँ को हुक्म दिया। सआदतखाँ की नीचता और कृतघ्नता उसका दुर्भाग्य बनकर उसके सिर पर मँडराने लगी। उसकी जो कृतघ्नता मुगल साम्राज्य के सर्वनाश का कारण बनी थी, वही उसके विनाश की भी कारण हो गयी । कोई किसी का विनाश नहीं करता। मनुष्य स्वयं अपना सर्वनाश करता है नादिरशाह की आज्ञाओं को सुनते ही सआदतखाँ के होश उड़ गये। उसकी रक्षा का अब कोई उपाय न रह गया था। उसने विष खाकर अत्मा हत्या की। उसके दीवान राजा मजलिसराय ने भी जहर खाकर अपनी जिन्दगी को खत्म किया। इसके बाद नयी संधि की गयी और उसके अनुसार समस्त पश्चिमी सूबे काबुल, ठट्टा, सिंध और मुलतान मोहम्मदशाह की तरफ से नादिरशाह को दिये गये और इन सूबों को अपने राज्य में मिलाकर और मुगलों की राजधानी दिल्ली को श्मशान बनाकर वह ईरान लौट गया। I 271
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