पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३१५

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1 को एक निश्चित कर अदा करेंगे। रायपुर, राजनगर आदि जिन दुर्गों पर विद्रोही सरदारों ने राणा के विरुद्ध अधिकार कर लिया था, उनको लेकर राणा के अधिकार में दे दिया और एक विशाल दुर्ग पर अंग्रेजों ने अपना अधिकार कर लिया। कमलमीर के दुर्ग में रहने वाली सेना का बहुत दिनों से वेतन बाकी था, उसको देकर अंग्रेजों ने उस पर भी अपना अधिकार कर लिया। कमलमीर के उत्तर में जिहाजपुर था। वहाँ से एजेण्ट की हैसियत से मैं राणा के दरबार के लिए रवाना हुआ। उदयपुर वहाँ से एक सौ चालीस मील था। इस लंबी यात्रा में मुझे केवल दो नगर मिले । वहाँ मनुष्यों की आबादी बहुत कम थी, उनकी घनी आबादी उजड़ गयी थी। सम्पूर्ण रास्ता मनुष्यों से खाली था। चारों तरफ वृक्ष दिखायी देते थे। चुतर्दिक फैले हुए जंगलों को देखकर मालूम होता था कि यहाँ पर मनुष्यों की आबादी नहीं । स्थान-स्थान पर जंगली जानवर घूमते हुए दिखाई देते थे। राज-मार्ग नष्ट हो गये थे और वे सब जंगली रास्ते बन गये थे। राजस्थान में भीलवाड़ा एक प्रसिद्ध व्यावसायिक नगर था। दस वर्ष पहले यहाँ पर छः हजार अच्छे घर थे और उनमें लोग अपने परिवारों के साथ रहते थे। भीलवाड़ा से होकर मैं गुजरा। उसकी गलियाँ सूनसान थीं। एक भी आदमी वहाँ पर न मिला। एक मंदिर में बैठे हुए कुत्ते ने मुझे देखा, वह मुझे देखते ही अपरिचित समझ कर भागा। मैं अपने लश्कर के साथ उदयपुर के करीब नाथद्वारा में ठहरा । वहाँ पर राणा का एक प्रतिनिधि मुझे मिला और वहाँ से लौटकर जाने के मौके पर मैंने कमलमीर दुर्ग प्राप्त किया। उसके बाद राणा का पुत्र जवानसिंह सामन्तों, सिपाहियों और बहुत से राज्य के अधिकारियों को साथ में लेकर स्वागत के लिये आया और हम सब को राजधानी में ले 1. इन दिनों में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ राणा भीमसिंह ने जो संधि की थी, उसका सारांश इस प्रकार है-(1) अंग्रेजों और राणा भीमसिंह के बीच इस संधि के द्वारा जो मित्रता कायम हो रही है, वह सदा के लिये है। एक का मित्र और शत्रु, दूसरे का भी मित्र और शत्रु होगा। (2) राणा के राज्य को सुरक्षित रखने के लिए अंग्रेज सरकार पूरी चेष्टा करेगी और उस पर कोई आक्रमण नहीं कर सकेगा । (3) उदयपुर के राणा को अंग्रेज सरकार की अधीनता में और समस्त कार्य करने पड़ेंगे। राज्य के सामंतों और सरदारों से राणा का कोई सम्बन्ध न रहेगा। (4) विना अंग्रेज सरकार की स्वीकृति के राणा को किसी राजा के साथ संधि अथवा राजनीतिक सम्बन्ध कायम करने का अधिकार न होगा। (5) राणा को स्वयं किसी पर आक्रमण करने का अधिकार न होगा। यदि किसी के साथ इस प्रकार की परिस्थिति पैदा हो तो उसका निर्णय अंग्रेज सरकार करेगी। (6) पाँच वर्ष तक राणा अपनी आमदनी का एक चौथाई भाग अंग्रेज सरकार को अदा करेगा और उसके बाद आमदनी का 3/8 भाग राणा को सदा देना पड़ेगा। राणा से दूसरा कोई कर न ले सकेगा। इसका उत्तरदायित्व अंग्रेज सरकार पर होगा। (7) मेवाड़ राज्य के जो इलाके दूसरे राजाओं ने छीनकर अपने अधिकार में कर रखे हैं, राणा का इरादा उनको वापस लेने का है। लेकिन इस समय अंग्रेज सरकार इस प्रकार के मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती । उदयपुर का जहाँ तक प्रश्न है, उसमें अंग्रेज सरकार सहायता करेगी। अंग्रेजों की सहायता से जो इलाके राणा को वापस मिल जायेंगे, राणा को उनकी आमदनी का 3/8 भाग देना पड़ेगा। (8) आवश्यकता पड़ने पर अंग्रेज सरकार राणा की सेना ले सकेगी। (9) मेवाड़-राज्य में अंग्रेजों का नहीं, राणा का प्रभुत्व रहेगा। यह संधि पत्र 16 जनवरी, सन् 1818 ईसवी को दिल्ली में लिखा गया। इस पर अंग्रेजों की तरफ से मिस्टर चार्ल्स मेटकाँफ और राणा की तरफ से अजितसिंह ने हस्ताक्षर किये और अपने-अपने राज्यों की तरफ से मोहरें लगायीं। टॉड साहब ने इन्हीं दिनों में लार्ड हेस्टिंग्ज से पश्चिमी राज्यों के पोलिटिकिल एजेण्ट होने का पद प्राप्त किया। साथ ही वह राणा के दरबार का एजेण्ट भी बनाया गया। सन् 1817 और 1818 ईसवी के युद्धों में टॉड साहब के अधिकार में एक अंग्रेजी सेना थी। उसको लेकर टॉड ने होलकर और के राजाओं के साथ युद्ध किया था और कोटा राजा से संधि की थी। 1 315