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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३२८

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मन्दोर नगर में उसका अधिकार था। मानसिंह ने बहुत ख्याति पायी थी और मरुप्रदेश में वह एक श्रेष्ठ राजा माना जाता था। उत्तर की तरफ नागौर कोट के करीब मोहिल लोग रहते थे। यद्यपि उनकी प्रतिष्ठा बहुत कुछ नष्ट हो गयी है। परन्तु ग्रन्थों में उनके बहुत से उल्लेख पाये जाते हैं। उन लोगों के राजा ने ओरीन्त नाम के स्थान पर अपनी राजधानी कायम की थी और उसके अन्तर्गत चौदह सौ चालीस गाँवों में उनका अधिकार था। बीकानेर से लेकर भटनेर तक सम्पूर्ण प्रदेश बहुत-से छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था और वे राज्य जाट लोगों के अधिकार में थे। उनके पूर्व की तरफ गारा की रेतीली भूमि पर कई जंगली जातियों का अधिकार था। जैसलमेर में भाटी, उसके दक्षिण में सोन और सिन्धु एवं कच्छ प्रदेश में जाड़ेजा जाति के लोग रहा करते थे। मरुप्रदेश में और भी अनेक जातियाँ रहती थीं। चन्दावती के पंवारों के बीच सोलंकी रहते थे। ईडर और मेवाड़ की कुछ जातियाँ, खण्डधर के गोहिल लोग, साचोर के देवड़ा, जालोर के सोनगरा, ओरीन्त के मोहिल लोग और सिनली के साला लोग - इस प्रकार कितनी ही प्राचीन जातियों के लोग उस विस्तृत मरुभूमि में रहा करते थे। बीकानेर नगर से पश्चिम की तरफ बीस मील की दूरी पर कोलूमठ नामक एक स्थान है। सिहाजी अपने साथियों के साथ वहाँ पर पहुँचा। कोलूमठ में एक सोलंकी राजा का शासन था। उसने सिहाजी के साथ शिष्टाचार पूर्ण व्यवहार किया। सोलंकी राजा के स्नेहपूर्ण व्यवहार से सिहाजी बहुत प्रसन्न हुआ। वहाँ पर लाखा फूलाणी, नाम का एक राजपूत रहा करता था। वह जाडेजा वंश में उत्पन्न हुआ था। मरुप्रदेश में उसका एक प्रसिद्ध दुर्ग था। उसकी शक्तियाँ महान थीं और उसने वहाँ के लोगों को अपने अत्याचारों से बहुत दुःखी कर रखा था। लाखा का नाम उन दिनों में वहाँ दूर तक फैला हुआ था और सतलज से लेकर समुद्र के किनारे तक जितने भी नगर और ग्राम थे, उनके निवासी लाखा का नाम सुनते ही घबरा उठते थे।। सोलंकी राजा ने सिहाजी और उसके साथियों को आदरपूर्वक अपने यहाँ स्थान दिया। वहाँ रहकर सिहाजी को लाखा की बहुत सी बातें सुनने को मिली। उसे यह भी मालूम हुआ कि यहाँ के लोग लाखा से बहुत डरते हैं और सोलंकी राजा स्वयं उससे भयभीत रहता है। वहाँ पर रहकर सोलंकी राजा के अच्छे व्यवहारों से सिहाजी बहुत प्रभावित हुआ और उसने सोलंकी राजा के शत्रु लाखा को पराजित करने का निश्चय किया। सोलंकी राजा को सिहाजी का इरादा मालूम हुआ। उसने सिहाजी की सहायता में अपनी सेना देने का वादा किया और सिहाजी ने जब लाखा से युद्ध करने की तैयारी की तो सोलंकी राजा ने अपनी सेना देकर सिहाजी को सेनापति बनाया। सिहाजी का भाई सेतराम भी युद्ध के लिये तैयार हुआ। जो राठौड़ राजपूत सिहाजी के साथ कन्नौज से मरुप्रदेश आये थे, वे भी युद्ध-क्षेत्र में जाने के लिये तैयार हो गये। सिहाजी ने सोलंकी राजा की सेना लेकर लाखा फूलाणी पर आक्रमण किया। दोनों ओर से युद्ध आरम्भ हुआ। अन्त में सिहाजी की विजय हुई। यद्यपि उस युद्ध में उसके भाई सेतराम के साथ-साथ कन्नौज के बहुत से राठौड़ वीर भी मारे गये। यद्यपि लाखा फूलाणी का आतंक चारों तरफ फैला हुआ था, परन्तु उसने निर्बलों पर कभी अत्याचार नहीं किया । वह अपने अनेक धार्मिक कार्यों के लिये भी प्रसिद्ध था। इसलिये बहुत से लोग उसकी प्रशंसा करते थे। राजस्थान के छः प्रसिद्ध नगरों पर लाखा फूलाणी का पूर्ण रूप से अधिकार था। 1. 374