पक्ष में चले जाना चाहिये । आपको किसी भी अवस्था में खुलकर एक तरफ ही रहना पड़ेगा। जीवन के ऐसे कठोर अवसरों पर जो तटस्थ होकर रहता है, वह कायर होता है।" भीमसिंह के इन वाक्यों से गजसिंह की उदासीनता दूर हो गयी और वह वादशाह की सहायता करने के लिये फिर से तैयार हो गया। इस समय युद्ध की परिस्थिति बहुत निकट आ गयी थी। विद्रोहियों की फौज के आगे बढ़ते ही गजसिंह ने अपनी शक्तिशाली सेना को आगे बढ़ाया और उस पर भयानक आक्रमण किया। बड़ी तेजी के साथ युद्ध आरम्भ हो गया। बहुत समय तक युद्ध होने के बाद शहजादा खुर्रम की पराजय हुई। वह अपनी जान बचाकर भाग गया। जिस उत्साही भीमसिंह ने युद्ध आरम्भ होने के पहले गजसिंह की उदासीनता दूर करके उसे युद्ध के लिये उत्तेजित किया था, वह इस युद्ध में मारा गया। शहजादा खुर्रम की फौज को पराजित करने के लिये आये हुये सभी राजपूत राजाओं को सम्मान मिला। लेकिन उस श्रेय का वास्तव में अधिकारी राजा गजसिंह वना । उसकी सहायता से विद्रोही सेना की पराजय हुई । गजसिंह इस श्रेय का भोग अधिक दिनों तक न कर सका । सम्वत् 1694 सन् 1638 ईसवी में वह गुजरात के एक युद्ध में गया था, जिसमें वह मारा गया। गजसिंह राठौड़ वंश का एक योग्य राजा था। राजस्थान में उसको बहुत सम्मान मिला। अमर और यशवन्त नाम के उसके दो लड़के थे। उसके अचल नाम का एक तीसरा लड़का भी पैदा हुआ किन्तु वह छोटी अवस्था में मर गया। अमर गजसिंह का बड़ा लड़का था। इसलिये राज्य का वही उत्तराधिकारी था और पिता के सिंहासन पर बैठने का वही अधिकारी था। परन्तु गजसिंह ने स्वयं अमर को इस अधिकार से वंचित कर दिया और इस सम्बन्ध में वह जो निर्णय कर गया था, उसके अनुसार उसका दूसरा पुत्र जसवन्तसिंह सिंहासन पर बिठाया गया। गजसिंह का पहला पुत्र अमरसिंह था। भाइयों - सबसे बड़ा होने के कारण वही अपने पिता का उत्तराधिकारी था। परन्तु राजा गजसिंह ने उसको इस अधिकार से क्यों वंचित किया था, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं पाया जाता । सम्वत् 1690 सन् 1634 ईसवी में गजसिंह ने मारवाड़ के सिंहासन पर बैठकर अपने मन्त्रियों के सामने घोषणा की थी। “अमरसिंह उत्तराधिकार से वंचित किया जाता है। वह कभी मारवाड़ के इस सिंहासन पर बैठ न सकेगा। मेरा उत्तराधिकारी दूसरा बेटा जसवन्तसिंह है। राज्य से निकल जाने का अमर सिंह को आदेश दिया जाता है।" इस आदेश के साथ-साथ अमरसिंह के राज्य के निकाले जाने की तैयारी होने लगी। उसके वस्त्र और आभूषण उसे दे दिये गये । उसके पहनने के सभी कपड़े काले रंग के थे। काला पजामा, काला अंगरखा, काले रंग की टोपी और काले ही रंग की ढाल व तलवार भी उसको दी गयी। अमर जब इन सब कपड़ों को पहन कर तैयार हुआ तो काले रंग का एक घोड़ा उसको दिया गया। उस पर बैठकर वह राज्य से निकल जाने के लिये रवाना हुआ। अमरसिंह ने अकेले अपने पिता का राज्य नहीं छोड़ा। उसके वंश के बहुत से लोग और वे लोग, जो राज्य का उत्तराधिकारी समझकर उसका सम्मान करते थे, उन्होंने अपनी इच्छा से अमरसिंह के साथ राज्य छोड़ना स्वीकार किया और वे सबके सब अमरसिंह के साथ रवाना हुए। अमरसिंह सबके साथ मारवाड़ से निकलकर मुगल बादशाह के यहाँ पहुँचा । बादशाह को यह घटना पहले से ही मालूम थी। राज्य से उसका निकाला जाना बादशाह ने भी स्वीकार किया। कुछ लेखकों ने गजसिंह की इस मृत्यु का विरोध किया है। उनका कहना है कि गजसिंह आगरा में जेठ सुदी 13 सम्वत् 1694 में बीमार होकर मरा था। 400 1.
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