पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३५९

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उस पर आक्रमण कर दिया होता तो निश्चित रूप से औरंगजेब की पराजय होती। वह जसवन्तसिंह के साथ युद्ध कर के सफलता प्राप्त करने की शक्ति न रखता था। लेकिन जसवन्तसिंह ने उसका लाभ न उठाया और वह अपने शिविर में चुपचाप बैठा रहा। इस अवसर को पाकर औरंगजेव मुराद से मिला और उसने अपनी शक्तियों को युद्ध के लिये मजबूत बना लिया। उसने इतना ही नहीं किया, बल्कि उसने जसवन्तसिंह के साथ जो मुगल सेना आगरा से आयी थी, उसके साथ उसने साजिश शुरू कर दी। जसवन्तसिंह के साथ जो मुगल सेना थी, कासिम खाँ उसका सेनापति था। औरंगजेव ने बड़ी बुद्धिमानी के साथ उसको मिला लेने की चेष्टा की और उसकी फौज के सिपाहियों में राजपूतों के विरुद्ध ऐसी अफवाहें पैदा कर दी, जिनके कारण जसवन्तसिंह के साथ की मुगल सेना औरंगजेब के षड़यन्त्र में फंस गयीं। इस अवसर पर औरंजगजेब ने जसवन्तसिंह पर आक्रमण किया। यह युद्ध सन् 1658 ईसवी के मार्च महीने में हुआ। राजा जसवन्तसिंह ने अपनी सेना के साथ औरंगजेब का सामना किया और दोनों ओर से घमासान युद्ध आरम्भ हो गया। मारकाट के थोड़े ही समय के वाद, जसवन्तसिंह के साथ आगरा से जो मुगल सेना आयी थी और कासिम खाँ जिसका सेनापति था, वह जसवन्तसिंह की सेना से निकलकर औरंगजेब की फौज के साथ मिल गयी । उस मुगल सेना के निकल जाने से जसवन्तसिंह की सेना वहुत थोड़ी रह गयी। अव उसके साथ केवल तीस हजार राजपूत थे। औरंगजेब और मुराद की फौजें एक साथ होकर जसवन्तसिंह से युद्ध कर रही थीं। आगरा की मुगल सेना के मिल जाने से औरंगजेब की शक्तियां महान् हो गयीं और इस विशाल सेना के द्वारा जसवन्तसिंह को पराजित करना औरंगजेब के लिये कठिन नहीं रहा। युद्ध की यह परिस्थिति जसवन्तसिंह के लिये भयानक हो उठी। उसको इस परिस्थिति का पहले कोई भी अनुमान न था। जसवन्तसिंह ने यह सब दृश्य अपनी आँखों से देखा, परन्तु उसने साहस से काम लिया और अपने तीस हजार राजपूतों पर विश्वास करके वह वरावर युद्ध करता रहा। उसने युद्ध में भयानक मारकाट की और अपने घोड़े को आगे बढ़ा कर एक साथ वह औरंगजेब के सामने पहुँच गया। उस समय मुगलों और राजपूतों में भीषण मारकाट हुई। इतनी देर के युद्ध क्षेत्र में दस हजार मुस्लिम सैनिक मारे गये और उनका संहार करने में सत्रह सौ राठौर राजपूतों ने युद्ध-क्षेत्र में अपने प्राण दे दिये। इनके साथ-साथ गुहिलोत, हाडा, गौड़ और अन्य सामन्तों के बहुत-से शूरवीर सैनिक मारे गये। युद्ध की परिस्थिति वड़ी भयानक थी । जसवंत सिह और उसका महबूब नामक घोड़ा रक्त से नहाया हुआ था। अंत में दोनों ओर की सेनायें हट गयीं और युद्ध रुक गया। उस समय रक्त से नहाया हुआ जसवंत सिंह भूखे शेर की तरह दिखायी पड़ रहा था। इस युद्ध के सम्बन्ध में भट्ट ग्रंथों में जो पढ़ने को मिलता है, भारत की यात्रा करने वाले बनियर और मुस्लिम इतिहासकारों ने उसी प्रकार का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है “यद्यपि औरंगजेब ने फ्रांसीसी गोलन्दाजों, तोपों और बहुत से हाथियों के साथ एक विशाल सेना लेकर राजपूतों से युद्ध किया था, फिर भी जसवंत सिंह ने उसको पराजित किया होता, यदि कोटा के इतिहास से प्रकट होता है कि कोटा का राजा और उसके पाँचों भाई युद्ध में मारे गये। 1. 405