औरंगजेब के बैठने पर शुजा का विद्रोह औरंगजेब के साथ हो गया। वह स्वयं मुगल सिंहासन का अधिकारी वनना चाहता था। इस दशा में औरंगजेब के साथ युद्ध करने के लिये वह अपनी फौज लेकर रवाना हुआ और आगरा की तरफ बढ़ रहा था। जसवन्त सिंह को औरंगजेव का सन्देश मिला। उसने सोच-समझकर औरंगजेब का संदेश मन्जूर किया। उसने शुजा के साथ युद्ध करने की तैयारी की। इसके पहले ही औरंगजेव अपनी फौज लेकर शुजा का सामना करने के लिए रवाना हुआ। इलाहावाद के तीस मील उत्तर की तरफ खजुआ नामक स्थान पर दोनों शहजादों की फौजों का सामना हुआ। उनमें युद्ध आरम्भ हो गया। युद्ध के इसी अवसर पर अपनी राठौड़ सेना लिए हुए जसवन्त सिंह वहाँ पहुँच गया। उस युद्ध को देखकर उसने समझा कि इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। औरंगजेब और शुजा दोनों एक दूसरे के प्राणों के घातक हो रहे हैं उसने मोहम्मद की फौज पर आक्रमण किया और उसके सिपाहियों को काट-काटकर फेंक दिया। उसके बाद वह बादशाही डेरे की तरफ बढ़ा, वहाँ पर जो सामग्री मिली, उसको ऊंटों पर लदवाकर वह आगरा की तरफ रवाना हुआ। औरंगजेब और शुजा में उस समय भयानक युद्ध हो रहा था। जिस समय जसवन्त सिंह अपनी सेना के साथ आगरा पहुँचा, उसके पहले ही वहाँ पर औरंगजेब के हारने की अफवाह उड़ रही थी। ऐसे असवर पर जसवन्त सिंह का अपनी सेना के साथ वहाँ पहुँच जाना वहाँ के लोगों के लिए घबराहट का कारण हो गया। आगरा में रक्षा करने के लिए औरंगजेब की जो फौज मौजूद थी, उस अफवाह को सुन कर वह बहुत भयभीत हो चुकी थी। उस समय जसवन्त सिंह यदि चाहता तो वहाँ की बादशाही फौज उसके सामने आत्म-समर्पण कर देती और उस समय जसवन्त सिंह शाहजहाँ को कारागार से निकाल सकता था। परन्तु इस तरफ उसका ध्यान न था। शुजा के साथ औरंगजेव का सन्देश जसवन्त सिंह को मिला। उस अवसर पर औरंगजेब ने बड़ी राजनीति से काम लिया। जसवन्त सिंह ने उस समय समझा कि औरंगजेब शुजा के साथ युद्ध करने जा रहा है। इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। वह समझता था कि शाहजहाँ की वृद्धावस्था है और दारा उसका उत्तराधिकारी है, वह इस अवसर का लाभ उठा सकता है। इसलिए उसने छिपे तौर पर दारा के साथ परामर्श किया और इस अवसर पर उसने अपने सुझाव दिये। इसके लिए दारा ने जहाँ पर जसवन्त सिंह से मिलने का वादा किया था, वहाँ न पहुँचा। इसलिए जसवन्त सिंह ने उसकी सहायता के लिए जो योजना बनायी थी, वह निष्फल हो गयी। दारा उन दिनों में मारवाड़ के दक्षिण में घूम रहा था। उसको इस समय अपने कर्तव्य का ज्ञान न था। वह औरंगजेब से बहुत भयभीत हो चुका था। उसकी अपनी शक्ति कोई काम न कर रही थी। इन्हीं दिनों में उसने सुना कि औरंगजेब से लड़ते हुये शुजा की पराजय हो गयी है। इस अवस्था में औरंगजेब से मेल कर लेने के अलावा कोई रास्ता उसके सामने न था। इसलिए विवश होकर दारा ने मेड़ता पहुँचकर औरंगजेब के साथ मेल कर लिया। आगरा पहुँचकर जसवंत सिंह वहाँ रुका नहीं। लूट का माल जितना उसके साथ था, सव का सब उसने जोधा के दुर्ग में बन्द करवा दिया। शुजा पर विजय प्राप्त करने के बाद कितने ही राजपूत राजा औरंगजेब के साथ हो गये। औरंगजेब आज का नहीं बहुत पहले का अत्यन्त चतुर राजनीतिज्ञ और षड़यंत्रकारी था। वह तलवार की शक्ति की अपेक्षा षड़यंत्रों की शक्ति पर अधिक विश्वास करता था। शुजा पर विजयी होने के बाद उसने 407
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