पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३७

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अध्याय 6 राजस्थान के छत्तीस राजवंश व उनकी आक्रमणकारी जातियों से समानता पिछले पुष्ठों में राजपूत जाति की वंशावली और उसका जो इतिहास लिखा गया है, उसके बाद यहाँ पर उन जातियों के सम्बंध में हम प्रकाश डालने की चेष्टा करेंगे, जिन्होंने समय-समय पर भारत में आकर आक्रमण किया और बाद में वे राजस्थान के छत्तीस राजवंशों में मानी गयीं। जिन जातियों का यहाँ पर हम उल्लेख करने जा रहे हैं, वे हय अथवा अश्य, तक्षक, जिट अथवा जिटी के नाम से प्रसिद्ध थीं। उनके देवताओं, विचारों, आचारों और नामों का सामंजस्य अन्य जातियों के साथ इतना अधिक था, जिससे बिना किसी विवाद के इस बात को स्वीकार करना पड़ता है कि वे और चीनी, तातारी, मुग़ल, हिन्दू और शक जातियाँ अपने प्रारंभिक जीवन में एक ही थीं, उन सब का मूल एक था। भारत में जिन बाहरी जातियों ने आकर आक्रमण किये, उनके आने और आक्रमण करने का समय निश्चित रूप में नहीं लिखा जा सकता। लेकिन जिन प्रदेशों से वे भारत में आयीं,उनको आसानी के साथ समझा जा सकता है। सबसे पहले हमें तातारियों और मुग़लों की उत्पत्ति को देखना है। उनका वर्णन, उनके इतिहास-लेखक अबुलगाजी ने किया है और उनकी उत्पत्ति के सम्बंध में पुराणों में भी उल्लेख मिलते हैं। तातारियों के आदि पुरुष का नाम मुग़ल था। उसके पुत्र का नाम ओगज था। वह उन सब जातियों का आदि पुरुष माना गया, जो उत्तरी प्रदेशों में रहती थीं और तातारी एवं मुग़ल कहलाती थीं। ओगज के छ: बेटे थे। । पहला बेटा किऊन2 था, उसका नाम पुराणों में सूर्य लिखा गया है, दूसरा अय था उसका नाम पुराणों में चन्द्र अथवा इन्द्र लिखा गया था। अंतिम नाम था आयु, जिसको पुराणों ने चन्द्रवंश के एक पूर्वज का नाम माना है। सभी तातारी लोग अपने-आप को आयु अथवा पुराणों में वर्णित चंद्र का वंशज मानते हैं और इसी आधार पर, जर्मन लोगों की तरह वे चंद्रमा को अपना देव मानते हैं। 1. इनमें चार पुत्रों के नाम चार तत्वों पर है । इन छ: बेटों से तातार की छह जातियाँ चलीं। बहुत समय तक हिन्दुओं ने उनकी दो ही जातियाँ मानीं। बाद में चार को मिलाकर छ: और उसके अंत में वे छत्तीस हो गयीं। 2. अबुलगाजी के अनुसार, किऊन का अर्थ तातारी भाषा में सूर्य और चन्द्र होता है ।